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''पल-पल फिसलती जिंदगी''

 

कोई पल ना बीतें काम के बिन हैं 

रस्ते जीवन के बहुत कठिन हैं l

 

खुशी और गम के घूँट घूँट के

अभिलाषायें मन में अनगिन हैं l

 

साँस जभी तक आस तभी तक

सिमट रहे हर पल पल-छिन हैं l

 

काया ठगती है क्षमता घटती है

और बुझती सी साँसें बैरिन हैं l  

 

ना होता हर दिन एक समाना

उम्मीदें भी लगतीं नामुमकिन हैं l

 

काम बहुत और समय रेत है

सब फिसल रहे हाथों से दिन हैं l

 

मंजिल है दूर कदम शिथिल हैं

अब पगडंडी भी लगती नागिन हैं l

 

-शन्नो अग्रवाल

 

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Comment

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Comment by Shanno Aggarwal on September 14, 2011 at 3:45am

गजल की सराहना करने का बहुत धन्यबाद, गणेश. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2011 at 9:58am

वाह वाह शन्नो दीदी, आप तो अच्छी ग़ज़ल कह दी है, दाद स्वीकार करें |

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