क्यों वह ताक़त के नशे में चूर है
आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।
गुलसितां जिस में था रंगो नूर कल
आज क्यों बेरुंग है बेनूर है।
मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।
जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है।
उसको "मजनूँ" की नज़र से देखिये
यूँ लगेगा जैसे "लैला" हूर है।
आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये
मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।
जुर्म यह था मैं ने सच बोला "सिया"
आज हर अपना ही मुझ से दूर है।
Comment
janab Ganesh Jee "Bagi ji -aap ka kahe hue in khobsoorat alfaaz ke liyeshukria aapki islah sar ankho par shukria.aapne pasand farmaya uske liye bahut shukraguzaar hun.nawazish hain aapki...salamati ho
janab surender ratti ji..aapake khoobsurat comment ke liye bahut bahut shukria...nawazish hain aapki !!!salamati ho
pradeep kumar sahni ji...zarraanawaazi aur hauslaa afzaai ka bahut bahut shukriya ...salamat rah
सिया जी, बहुत प्यारी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें - सुरिन्दर रत्ती - मुंबई
आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये
मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।
जुर्म यह था मैं ने सच बोला "सिया"
आज हर अपना ही मुझ से दूर है।
//क्यों वह ताक़त के नशे में चूर है
आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।//
इंसान की फितरत को बयान करता खुबसूरत मतला |
//गुलसितां जिस में था रंगो नूर कल
आज क्यों बेरंग है बेनूर है।//
प्रश्नवाचक शे'र, मिसरा उला को मिसरा सानी द्वारा अनुमोदित होना चाहिए था अर्थात यदि बेनूर भी है तो उसका कारण स्पष्ट हो तो क्या कहने |
//मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।//
जबरदस्त, खुबसूरत कहन, जोरदार प्रेषण |
//जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है।//
सही कह रही है आदरणीया, दिमाग और दिल कभी कभी अलग अलग कासन देने लगते है और अधिकांशतः हम दिल से हार जाते है, खबसूरत शे'र |
//उसको "मजनूँ" की नज़र से देखिये
यूँ लगेगा जैसे "लैला" हूर है।//
वाह वाह, क्या बात कही है, बात भी सही है, खूबसूरती तो इंसान की नज़रों में है |
//आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये
मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।//
यह हुआ प्यार में हार कर भी जीतना, यह शेर भी जोरदार है |
//जुर्म यह था मैं ने सच बोला "सिया"
आज हर अपना ही मुझ से दूर है।//
वाह वाह वाह, क्या कहने, सच कभी परास्त नही होता, खुबसूरत मकता, दाद कुबूल करे आदरणीया |
अच्छी गजल है |
जुर्म यह था मैं ने सच बोला "सिया"
आज हर अपना ही मुझ से दूर है।
अच्छा शेर !! बहुत ही प्रभावी ग़ज़ल ! सिया जी को हार्दिक बधाई !!
निम्नलिखित उम्दा कहन पर मेरी हार्दिक बधाई..
मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।
जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है।
उसको "मजनूँ" की नज़र से देखिये
यूँ लगेगा जैसे "लैला" हूर है।
वाह !
मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।
जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है।
वाह वा खूबसूरत कहन के लिए आपको हार्दिक बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online