For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")



मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|

 

जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,
दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की.   |२|

माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,

हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|


जान देकर जो गये अपनी शहीदाने वतन,
कीजिये अब क़द्र उन जाबांज़ के बलिदान की. |५|


जिंदगी है चार दिन की जिंदगी खुल के जियो,
बात आये सामने गर दान की बलिदान की. |६|


एक है अपना लहू औ एक है अपना वतन,
जो अलग हमको करे वो चाल है शैतान की. |७|


आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,
भक्ति निर्गुण की भली है दोस्ती गुणवान की. |८|


राह सच्ची हम चले तो हाथ आई मुफ़लिसी,
जी रहे हैं आज 'अम्बर' जिन्दगी वह शान की. |९|

--अम्बरीष श्रीवास्तव



Views: 644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 22, 2011 at 12:48am

आदरणीय सौरभ जी ! आप ने इस ग़ज़ल के के एक-एक शेर को तबज्जो देकर  इसे  इज्जत बख्शते हुए हमारी जिस तरह से हौसला आफजाई की है उसके लिए आपका से  दिल से शुक्रगुजार हूँ ! सादर:


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 21, 2011 at 11:25pm

एक अच्छी ग़ज़ल के लिये साधुवाद. वैसे तो सारे अश’आर बेहद खूबसूरत बन पड़े हैं. जहाँ आत्म-सम्मान और देश की शान की चर्चा खुल कर की गयी है.  इस खुसूसी रुमानियत से बढ़ कर भला और कौन सी भावना होगी जो सर चढ़ कर बोले. भाई अम्बरीषजी, बधाई हो कि ये भावना सर चढ़ी है और खूब चढ़ी है. 

मतले से जो आपने समाँ बाँध है वो मकते तक पुरजोर तरीके से तारी है. जिन अशा’आर की रुहानी रवानी में मैं डूब-डूब गया हूँ, भाई साहब, आपसे साझा कर रहा हूँ. 

मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की.

जिस साफ़गोई से और जिस सीधी-सादी ज़ुबान में आपने इतना कुछ कहा है यह सबके बस की बात नहीं है. अफ़सोस, इतना सही मशविरा फिर भी लोगों को समझ नहीं आता. लोग हैं कि पता नहीं किस ज्ञान-प्राप्ति और सत्यानुभूति की बात करते दीखते हैं. लाहौलबिलाकूव्वत !  ..

 

माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,  

हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की.

परस्तिश के नाम पर सिर्फ़ सजदे किये जायँ यह कहीं नहीं कहा गया है. एक शुक़्रगुज़ार शख़्स के लिये कहने को और भी बहुत कुछ हैं, इस शेर के मार्फ़त आपने इस बात को बखूबी सामने रखा है. 

 

आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,
भक्ति निर्गुण की भली है दोस्ती गुणवान की.

वाह-वाह ! एक अनुभवी आदमी से ही यह आशा हो सकती है कि वह इस फ़लसफ़े को साझा करे. 

 

राह सच्ची हम चले तो हाथ आई मुफ़लिसी,
जी रहे हैं आज 'अम्बर' जिन्दगी वह शान की.

सारे लोग मेरे अपने-अपने और सारा जहाँ हमारा की तान इस तरह का मुफ़लिस ही कह सकता है. शायर की इस मुफ़लिसी का ताव सभी महसूस कर रहे हैं. इस मर्दाना अंदाज़ के लिये आपको दिली दाद पेश है. बहुत अच्छा मक्ता है भाई जी. ..

एक क़ामयाब ग़ज़ल के लिये बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय अम्बरीषजी.

 


छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की.

माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,

हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की.

आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,
भक्ति निर्गुण की भली है दोस्ती गुणवान की.राह सच्ची हम चले तो हाथ आई मुफ़लिसी,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की.

माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,

हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की.

आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,
भक्ति निर्गुण की भली है दोस्ती गुणवान की.राह सच्ची हम चले तो हाथ आई मुफ़लिसी,
Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 21, 2011 at 12:36pm

आदरणीय भाई बागी जी ! इस ग़ज़ल को पसंद करने व इस तरह से सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार मित्रवर!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 20, 2011 at 10:36pm

एक है अपना लहू औ एक है अपना वतन,
जो अलग हमको करे वो चाल है शैतान की

 

अम्बरीश भाई बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने सभी शे'र उच्च ख्यालात से लबरेज है, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें मित्र |

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 10:39pm

स्वागत है भाई आशीष जी ! आपको यह ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए आपका हार्दिक आभार मित्रवर !

Comment by आशीष यादव on October 19, 2011 at 7:01pm

ek bahut hi achchhi ghazal kahi hai aapne. bhaw bahut hi shandar hai. 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 9:12am

आदरणीय अरुण जी ! आपका हार्दिक स्वागत है ! गज़ल के एक एक शेर की समीक्षा करते हुए आपने इसे जो मान दिया है  उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया मित्रवर ! जय हो !!! :-)

Comment by Abhinav Arun on October 19, 2011 at 8:33am

बहुत खूब बेहतरीन संदेशपरक सकारात्मक विचारों की ग़ज़ल--

मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|

 सही कहा स्वाभिमान को त्यागे बिना ज्ञान प्राप्ति संभव नहीं

जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,
दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की.   |२|

वाह देश प्रेम से बढ़कर और भला क्या हो सकता है यह सोच सब की हो ! अमीन !!

माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,

हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|

वाह कमाल का अंदाज़ .. ताकतवर बयान


जान देकर जो गये अपनी शहीदाने वतन,
कीजिये अब क़द्र उन जाबांज़ के बलिदान की. |५|

सही बात ..आज शहीदों के आदर्श अपनाने की ही ज़रूरत है


जिंदगी है चार दिन की जिंदगी खुल के जियो,
बात आये सामने गर दान की बलिदान की. |६|

ये मन्त्र ही मूल है
एक है अपना लहू औ एक है अपना वतन,
जो अलग हमको करे वो चाल है शैतान की. |७|

अच्छा संकेत संभल जाएँ वो जो भटके हैं


आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,
भक्ति निर्गुण की भली है दोस्ती गुणवान की. |८|

अब्मरीश जी आपकी इस साफगोई को सलाम है
राह सच्ची हम चले तो हाथ आई मुफ़लिसी,
जी रहे हैं आज 'अम्बर' जिन्दगी वह शान की. |९|

जी यही हासिल है आज ... सच के पैरोकारों की

अम्बरीश जी जिंदाबाद ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकवाद !

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service