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दोहा सलिला : गले मिले दोहा यमक --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला

गले मिले दोहा यमक

--संजीव 'सलिल'

*

जिस का रण वह ही लड़े, किस कारण रह मौन.

साथ न देते शेष क्यों?, बतलायेगा कौन??

*

ताज महल में सो रही, बिना ताज मुमताज.

शिव मंदिर को मकबरा, बना दिया बेकाज..

*

भोग लगा प्रभु को प्रथम, फिर करना सुख-भोग.

हरि को अर्पण किये बिन, बनता भोग कुरोग..

*

योग लगाते सेठ जी, निन्यान्नबे का फेर.

योग न कर दुर्योग से, रहे चिकित्सक-टेर..

*

दस सर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.

नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव?

*

करे कलेजा चाक री, अधम चाकरी सौत.

सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..

*

चढ़े हुए सर कार पर, हैं सरकार समान.

सफर करे सर कार क्यों?, बिन सरदार महान..

*

चाक घिस रहे जन्म से. कोइ न समझे पीर.

गुरु को टीचर कह रहे, मंत्री जी दे पीर..

*

रखा आँख पर चीर फिर, दिया कलेजा चीर.

पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..

*

पी मत खा ले जाम तू, है यह नेक सलाह.

जाम मार्ग हो तो करे, वाहन इंजिन दाह..

*

कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.

करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..

*

Acharya Sanjiv Verma 'Salil'


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