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जिंदगी एक खुली किताब !!!

जिंदगी एक खुली किताब है,
फिर भी ये किताब खुद के पास हो,
बेहतर
जो जाने कीमत इसकी,
जो जाने इज्जत इसकी,
जो इसके पन्नो का मोल समझे,
ये किताब हो तो उसके पास हो,

जो सर से लगाये यू ,
सरस्वती का वास हो,
भला हो या बुरा हो ,
अपना समझ कर जो माफ़ करे,
कुछ सीख नयी हो सीखलाने की,
दे वो सीख मृदुल मुस्कान से ,
जिंदगी की वो खुली किताब,
हो तो उसके पास हो |

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 31, 2010 at 10:13pm
बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण कविता है डॉ साहिबा, आपने सही मायने मे खुली किताब को समझा दिया है, एक अच्छी रचना, धन्यवाद,
Comment by Dr Nutan on August 31, 2010 at 8:41pm
धन्यवाद एडमिनिस्ट्रेटर जी.. आपका शुक्रिया ..इस शानदार ओं लाइन साइट के लिए और हिन्दी टाइपिंग के बारे मे बताने क लिए ..और इस सुंदर रोमन हिन्दी को सही मायने मे हिन्दी भाषा मे तब्दील करने के लिए
Comment by Admin on August 31, 2010 at 8:26pm
आदरणीया डॉ नूतन जी, प्रणाम,
सर्वप्रथम मै ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपकी पहली पोस्ट का दिल से स्वागत करता हूँ , बहुत ही अच्छा लगा जो आपने इस साईट की थीम को अपनी कविता के माध्यम से बताने का प्रयत्न की है, इस शानदार और खुबसूरत अभिव्यक्ति हेतु बधाई स्वीकार करे,

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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