माहो-अख्तर के बिना आसमां  हूँ मैं ,
 .यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |
 
 अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |
 पढने वालों के लिए  इम्तहाँ हूँ मैं |
.
चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा ,
 उस दौलत -ऐ-हुस्न का पासबाँ हूँ मैं |
.
छिप सकता है दर्द तेरा ,भला कैसे
 तुम्हारे हर राज़ का राज़दां हूँ मैं |
 .
या एजद! जाऊं कहीं और मैं कैसे ,
 जब तेरे दर का संगे- आस्तां हूँ मैं|
.
कोई भी आकर बसे तो ख़ुशी होगी,
 बहुत  वक्त से एक सूना मकां हूँ मैं |
.
माना  लिखता हूँ सुख़न मैं बहुत अच्छा  ,
 फिर भी ग़ालिब -सा सुख़नवर कहाँ हूँ मैं |
Comment
बहुत आभार आप सब दोस्तो का..:)
nice
बहुत अच्छी ग़ज़ल नजील साहब बधाई आपको ख़ास कर यह शेर बहुत अच्छा है -- कोई भी आकर बसे तो ख़ुशी होगी, बहुत वक्त से एक सूना मकां हूँ मैं |
bahut achchha hai
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