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माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,

माहो-अख्तर के बिना आसमां  हूँ मैं ,
.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |

अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |
पढने वालों के लिए  इम्तहाँ हूँ मैं |

.

चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा ,
उस दौलत -ऐ-हुस्न का पासबाँ हूँ मैं |

.

छिप सकता है दर्द तेरा ,भला कैसे
तुम्हारे हर राज़ का राज़दां हूँ मैं |
.

या एजद! जाऊं कहीं और मैं कैसे ,
जब तेरे दर का संगे- आस्तां हूँ मैं|

.

कोई भी आकर बसे तो ख़ुशी होगी,
बहुत  वक्त से एक सूना मकां हूँ मैं |

.

माना  लिखता हूँ सुख़न मैं बहुत अच्छा  ,
फिर भी ग़ालिब -सा सुख़नवर कहाँ हूँ मैं |


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Comment

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Comment by Nazeel on December 16, 2011 at 8:22pm

बहुत आभार आप सब दोस्तो का..:)

Comment by dilbag virk on December 16, 2011 at 3:43pm

nice

Comment by Abhinav Arun on December 16, 2011 at 1:50pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल नजील साहब बधाई आपको ख़ास कर यह शेर बहुत अच्छा है -- कोई भी आकर बसे तो ख़ुशी होगी, बहुत वक्त से एक सूना मकां हूँ मैं |

Comment by sitaram singh on December 16, 2011 at 11:56am

bahut achchha hai

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