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हाईटैक भक्त – हाईटैक भगवान

भगवन कहां छिपे हो मुझको काल करो,

काल नहीं ना सही, प्रभु मिस काल करो ।

इक पल में ही काल रिटर्न करूँगा मैं,

किसी बात पर प्रभु ना ध्यान धरूँगा मैं,

अब तो मिलने की प्रभु कोई चाल करो।     (भगवन कहां छिपे …)

 

अगर लाँग डिस्टेंस है तो कुछ बात नहीं,

चैटिंग का पैकेज तो मंहगी बात नहीं,

डेटिंग, चैटिंग कुछ तो सूरत-ए-हाल करो।   (भगवन कहां छिपे…)

 

फ़ोन नहीं तो इंटरनैट पर आ जाओ,

स्काइप पे आकर प्रभुवर दरश दिखा जाओ,

अपना मिलना मत प्रभु कठिन सवाल करो।   (भगवन कहां छिपे…)

 

अगर फ़ेस बुक पर हो तो दास को ऐड करो,

करूँ ट्वीट अब इसमें प्रभु क्यों देर करो,

ब्लाग पोस्ट पर अपना प्रभु हवाल करो।    (भगवन कहां छिपे…)

 

बहुत रहे मंदिर में अब तो घर आओ,

आई फ़ोन पर दर्शन दो, मत तरसाओ,

अपने दासों का जीवन खुशहाल करो।   (भगवन कहां छिपे…)

 

जब भी दास सरन को मिलने आते हो,

सपने में दर्शन देकर छिप जाते हो,

लैपटाप पर दिखकर प्रभु निहाल करो।   (भगवन कहां छिपे…)

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Comment

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Comment by Prof. Saran Ghai on February 6, 2012 at 12:32am

नीरज जी,

आप बढ़िया हैं, आपकी बात बढ़िया है,

बात कहने का आपका अंदाज बढ़िया है,

’सरन’ की चाह तो भगवान के दर्शन पाना है,

मंदिर हो या लैपटाप, हमने इसमें कोई फ़र्क नहीं जाना है।

प्रो. सरन घई

संस्थापाक - विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा

Comment by Prof. Saran Ghai on February 5, 2012 at 9:01pm

राज बुंदेली साहब,

सहृदय पाठकों से है कविता जगत आबाद,

कैविता की प्रशंसा के लिये अनेकों धन्यवाद।

- प्रो. सरन घई

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2012 at 1:53pm

बढ़िया है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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