वक़्त का वज़ूद
वक़्त की बेलगाम रफ़्तार का वज़ूद
दिखता है चेहरे की गहराती लकीरों में
या मिलता है जीवन की भूलभुलैया में
स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौज़ूद
है अब भी मेरे होने की महक
सन्नाटों में गूँजती है मेरी चहक ।
चलती थी एक गुड़िया उँगलियों को थामे
उन काँपती बेजान हाथों की नरमी
और छुपी उनमे उनके नेह की गरम
उन्हीं थापों से बीतती हैं रातें ,हँसती है शामें ।
चराचर का भेद समझा जब ज्ञानदीप से
जीवन को गुज़रता देखा सामने से
अतीत के गर्त में चाहे सब कर दो विसर्जित
अभिन्न जनों को जोड़ता हृदय-तार
अखंडित रहता ,झेलता समय की मार
कुछ काल खंड सदा रहते दिल में सुसज्जित ।
Comment
स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौज़ूद
है अब भी मेरे होने की महक
sundar abhivyakti, badhai.
hearty thanks to all of you who liked this poem .
गहन भावों से सजाई हुई रचना के लिए हार्दिक बधाई|
atisundar. rachna , bha gai, badhai
सुंदर रचना बधाई स्वीकार करें
बहुत सुन्दर कविता, बधाई स्वीकार करें.
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