यही है ख़ुदाई उसकी, छोटी सी ये इल्तजा,
जो कभी की थी उससे, पूरी वो न कर सका;
तेरे मेरे बीच हैं अब, मीलों के फ़ासले
कभी सामने थे तुम, आज हो गए परे
तेरे मेरे बीच हैं…
एक वो भी लम्हा था, तुम थे मेरे रूबरू,
दीद भी हुआ नायाब, ढूँढता हूँ चार सू;
फिर भी एक यक़ीं सा है, ज़िंदगी अजीब है
दूर हो के भी तू मुझसे, और भी क़रीब है
तेरे मेरे बीच हैं…
अब नहीं है कोई हसरत, और कुछ न है चाहत,
सफ़रे आख़िरत से भी, मिलेगी नहीं राहत;
चंद क़दमों की है दूरी, और है वही मजबूरी
इस जनम मुकम्मल न हो, अगले जनम होगी पूरी
तेरे मेरे बीच हैं...
http://www.youtube.com/watch?v=S77jz2KTgQo
(उपर्युक्त यू ट्यूब लिंक पर क्लिक कर के मेरी आवाज़ में इस गीत को अवश्य सुनें)
Comment
जी वीनस जी! प्रयासरत हूँ जानता हूँ कि कुछ भी आसानी से नहीं मिलता उसके लिए बड़े यत्न करने पड़ते हैं| आपके सहयोग का आकांक्षी हूँ|
आप जो लिख रहे हैं वो अपने आप में खुद शिल्पगत है
आप अच्छा लिखते हैं मुदित हूँ
वीनस जी,
मन में जो कुछ भी आता है लिख डालता हूँ कभी वो अच्छा भी होता है कभी नहीं भी होता| आपको भाव पसंद आये इसके लिए शुक्रगुज़ार हूँ शिल्प पर आपसे सहयोग मिला रहा है.. ग़ज़ल कक्षा के पाठों को आत्मसात करने में कुछ वक़्त लगेगा| :))
अब नहीं है कोई हसरत, और कुछ न है चाहत,
सफ़रे आख़िरत से भी, मिलेगी नहीं राहत;
आपका दर्द दर्दे हकीकी से दर्दे मजाजी हो रहा है
इस श्रेष्ठता को सलाम
आपका हार्दिक आभार राज जी| धन्यवाद,
good voice !! liked एक वो भी लम्हा था, तुम थे मेरे रूबरू,
दीद भी हुआ नायाब, ढूँढता हूँ चार सू;~~~
आपने रचना के मर्म को समझा और अपनी दाद दी उसके तहे दिल से शुक्रिया नीरजा जी|
भाव पूर्ण रचना बधाई स्वीकार करें
आदरणीय अभिनव जी आपका तहेदिल से शुक्रिया|
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