For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं पहाड़ी नदी हूँ…

उसी स्वामी के अस्तित्व से उद्भूत होती

उसी का सीना चीरती, काटती

अपने गंतव्य का पथ बनाती

विच्छिन्न करती प्रस्तरों-शिलाओं को

विखंडनों को भी चाक करती

सब साथ बहा ले जाती

अपने पीछे पहाड़ पर मैं

छोड़ जाती केवल चिन्हों की थाती

चिन्ह जो प्रतीक हैं मेरे पहाड़ से

पराभव और गमन के

हाँ…!! जिससे उपजी मैं उसे ही

छोड़ जाती हूँ…

पर मेरा कोई दोष नहीं

यही मेरी नियति है

जिसे ख़ुद पहाड़ ने लिखा

मेरा प्रारब्ध निश्चित किया

क्यूँ हैं उस पर ढलान बने

अपने उद्गम से यही पाती हूँ मैं

वही मुझे गति है देता चलायमान करता

मेरा तो काम ही है प्रवाहित होना

बस बहते जाना

प्रकृति के यौवन को चिरकाल तक

प्रतिदिन सजाना

जिस क्षण मैं रुकी, मेरा जीवन

मेरा अस्तित्व विलीन हो जायेगा

फिर भी उत्कंठित होता है हृदय

इस अलभ्य अभिलाषा से

क्या मैं कोई सरोवर नहीं हो सकती थी

जो सदा यहीं रहती अपने गांव में

अपनों और अपने सपनों के बीच

शांति और सुरम्यता में

किन्तु यह स्वप्निल तन्द्रा

भंग हो जाती है, लौट आती है

वास्तविकता के धरातल पर

कि तब मेरी यह चंचलता और

स्वच्छंदता न होती

मेरा हंसना-खिलखिलाना न होता

बिना मेरे इस मुक्त गुंजित कलकल निनाद

जो प्रत्याभास देता है मधुरिम संगीत का

मधु सा घुलता हुआ कर्णप्रिय नाद

Views: 1345

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 23, 2012 at 1:02pm

हार्दिक आभार वीनस जी!

पिछले वर्ष गर्मियों में उत्तराखण्ड की सैर पर था वहाँ रामगंगा को देख कर कुछ भाव मन में उत्पन्न हुए और फलस्वरूप यह रचना साकार हुई| मैं कविताएँ लिखता तो नहीं मगर इस विषय के लिए मुझे यही शैली उचित लगी| :))

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 12:30pm

प्रतीकों के माध्यम से आपने अपने मन की उथल पुथल को और विचारों को सुन्दर शेड दिए हैं

संदीप जी विशेष बधाई

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 13, 2012 at 6:38pm

आदरणीय सौरभ जी,

सारगर्भित विवेचना के लिए हार्दिक आभार| सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 13, 2012 at 5:05pm

नदी का मानवीकरण कई ढंग के विचार सामने रखता है.  होना या न होना के द्वंद्व को संज्ञाभूत इकाई का उत्तरदायित्त्व ही संतुलित कर होने के अर्थ की विवेचना करता है. अच्छे सोच की कविता के लिये संदीपजी हार्दिक बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 13, 2012 at 4:39pm

आदरणीया राजेश जी,

प्रोत्साहन के माध्यम से प्रेरित करने के लिए आपका तहे दिल शे शुक्रिया अदा करता हूँ|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 13, 2012 at 4:38pm

महिमा जी,

बस मेरी ऐसी आदत ही है, जब जो मन में आ जाए लिख डालता हूँ, ये तो आप ही लोग हैं जो मेरे जैसे साधारण लेखक को कवि और ग़ज़लनिगार मान लेते हैं| प्रशंसा के लिए आभारी हूँ| :-)

Comment by MAHIMA SHREE on March 13, 2012 at 3:29pm
वाहिद जी ,
अतुकांत कविता...क्या कहने ....गजलनिगार से अतुकांत कवि....क्या बात है...
सुंदर सरल अभिव्यक्ति.....बधाई...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 13, 2012 at 2:49pm

अद्दभुत अतिउत्तम ,बहुत सुन्दर जितनी तारीफ की जाए कम होगी ....बधाई इस अप्रतिम रचना के लिए 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 13, 2012 at 2:24pm
आदरणीय योगराज जी,
आपकी प्रशंसा से और भी बेहतर करने के लिए प्रेरित हुआ हूँ| आभार आपका,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 13, 2012 at 1:27pm

कथ्य और शिल्प की दृष्टि से बहुत सधी हुई कविता, अपने नाम के ही अनुरूप कल कल कल कर आगे बढती हुई, हार्दिक बधाई स्वीकार करें संदीप द्विवेदी साहिब.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार। विस्तार से दोष…"
Mar 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
Mar 6
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Mar 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Mar 2
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Mar 1
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Feb 28
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service