लघु कथा : हाथी के दांत
बड़े बाबू आज अपेक्षाकृत कुछ जल्द ही कार्यालय आ गए और सभी सहकर्मियों को रामदीन दफ्तरी के असामयिक निधन की खबर सुना रहे थे. थोड़ी ही देर में सभी सहकर्मियों के साथ साहब के कक्ष में जाकर बड़े बाबू इस दुखद खबर की जानकारी देते है और शोक सभा आयोजित कर कार्यालय आज के लिए बंद करने की घोषणा हो जाती है | सभी कार्यालय कर्मी इस आसमयिक दुःख से व्यथित होकर अपने अपने घर चल पड़ते है | बड़े बाबू दफ्तर से निकलते ही मोबाइल लगा कर पत्नी से कहते है "सुनो जी तैयार रहना मैं आ रहा हूँ, आज सिनेमा देखने चलना है"
Comment
मैंने तो किस्सा सुनाया था किसी शैतान का , आपको क्यों शक हुआ यह आपके बारे में है !!!
Yeh laghu katha jeevan ka sach bayaan karti hai. Hum logon ki prayogshaala main bhi log condolence meeting ke samay se hi bahar jaane ki taiyaari kar dete the aur meeting main bahut kam log jaate the. lekhak ko bahut bahut badhai.
Dr Shri Krishan Narang, Jamshedpur
आदरणीय बागी जी ,सादर अभिवादन . इस लघु कथा ने आज के अति आधुनिक समाज को बड़ी कुशलता से प्रतिबिम्बित किया है ,, जय भारत
//श्रद्धेय बाग़ी जी, यह लघुकथा मज़ेदार और हास्योत्पादक तो है ही, साथ ही आज के समसामयिक संदर्भों में परिवेश पर एक तीक्ष्ण कटाक्ष भी है ।//
आदरणीय रविन्द्र नाथ साही जी, उक्त विचार से सहमत हूँ एवं आभारी हूँ |
///आज का जल्दबाज़ आदमी मतलब के लिये हर प्रकार का शार्टकट अपनाने को तैयार है, चाहे उसका प्रतिबिम्ब कितना भी अशोभनीय क्यों न हो । रातोंरात अमीर बनने की बात हो, ट्रैफ़िक की भीड़ से कन्नी काटकर संकरी गलियों का रास्ता अपनाने की बात हो, या फ़िर आप महोदय की तरह एक अदद कहानी रचने की ही बात हो । ///
आदरणीय आपके उपरोक्त विचार को मैं समझ नहीं सका, प्रस्तुति में कोई कमी हो तो स्पष्ट रूप से बताये , सदैव मैं उसे सर आँखों पर बैठाने के लिए तैयार हूँ किन्तु आप के द्वारा बोल्ड पक्ति में कही गई बात का अर्थ मैं नहीं निकाल सका, कृपया स्पष्ट करना चाहेंगे |
आदरणीय सौरभ भईया , सराहना के साथ कमजोर पक्ष को इंगित करने हेतु आपको कोटिश : धन्यवाद , आगे से मैं और भी चौकस रहूँगा जिससे शिल्प की कमियों को भी न्यूनतम कर सकूँ |
पुनः आपका आभार |
संदीप जी, सराहना हेतु आभार |
आदरणीय लाल बिहारी जी, जनता में जागरूकता निसंदेह आई है किन्तु अभी पूरी तरह नहीं, चौक चौराहों पर बैठे नीम हकीम, तोते के साथ बैठा भविष्यवक्ता, जहर खुरानी गिरोह, दागदार नेता आदि की दूकान यदि अभी तक प्रोफिट में है तो जागरूकता कहा है , बहरहाल टिप्पणी हेतु आभार आपका |
सराहना हेतु आभार आदरणीय हरीश भट्ट जी |
आभार आदरणीया , महिमा श्री जी |
आस-पास की या दैनिक जीवन की कुछ सचाइयाँ कितनी चुभती हुई होती हैं !
यह कथा इस तथ्य का भी दर्पण है कि टुकड़ों-टुकड़ों में जीते, आपाधापी, भागमभाग और तमाम ऊहापोह में जकड़े एक आदमी के लिये स्वयं के परिवार को दिया जाता समय कितना महँगा हो गया है. कुछ पल चाहे जिस तरह से सुलभ हों उपहार सदृश होते हैं
कथा को भाषायी स्तर पर थोड़ा और कसा जा सकता था.
इस लघुकथा के लिये बधाई, भाई गणेशजी.
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