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मुक्तिका सत्य संजीव 'सलिल'

सत्य

संजीव 'सलिल'
*
सत्य- कहता नहीं, सत्य- सुनता नहीं?
सरफिरा है मनुज, सत्य- गुनता नहीं..
*
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी.
सिर्फ कहता रहा, सत्य- चुनता नहीं..
*
आह पर वाह की, किन्तु करता नहीं.
दाना नादान है, सत्य- धुनता नहीं..
*
चरखा-कोशिश परिश्रम रुई साथ ले-
कातता है समय, सत्य- बुनता नहीं..
*
नष्ट पल में हुआ, भ्रष्ट भी कर गया.
कष्ट देता असत, सत्य- घुनता नहीं..
*
प्यास हर आस दे, त्रास सहकर उड़े.
वाष्प बनता 'सलिल', सत्य- भुनता नहीं..
*
*******************

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on September 19, 2010 at 12:59am
यह तो तरही मुशायरे के लिये भेजी मुक्तिका है. दूसरी द्विपदी का प्रथम पद दी गयी पंक्ति ही है.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 18, 2010 at 3:53pm
चरखा-कोशिश परिश्रम रुई साथ ले-
कातता है समय, सत्य- बुनता नहीं..

कलात्मक अभिव्यक्ति, पूरी रचना एक अलग कलेवर मे , बहुत सुंदर ,

कृपया ध्यान दे...

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