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मुक़दमा -उस्ताद की कलम से


बिस्मिल्लाह हिर्रहिमा निर्रहीम

हिलाल वजीरगंजवी (बदायूं )

हिलाल अहमद 'हिलाल ' मेरे सभी शागिर्दों में एक मुनफ़रिद मकाम के हामिल है . हिलाल , आले अहमद 'ज़ौक मुहम्मदी के फरजंद और हाफिज़ अबरार अहमद 'जाहिद मुहम्मदी के भतीजे है उन के दादा मरहूम मौलवी मुहम्मद बक्श साहब बस्ती के मशहूर पाकबाज़ शक्सीयत थे .

ज़ौक मुहम्मदी , जाहिद मुहम्मदी ने भी मुझसे शरफ तलाम्मुज़ हासिल किया और फख्र की बात ये है के मेरा और हिलाल का घराना एक ही पीर -ऐ -तरीक़त हज़रत शाह वली मुहम्मद क़दीरी रशीदी से बैत है .

हिलाल वजीर गंजवी ने फन उरूज से मखसूस नुकात समझने हासिल करने में और अदबी कद्र -ओ -कीमत जानने में अच्छी सलाहियत और दिलचस्पी का सुबूत दिया है . अल्लामा अखलाक देहलवी की तसनीफ फन -ऐ -शायरी व दीगर क़ुतुब से इस्तागादा हासिल करके बिला ताखीर खातिर खः कामयाबी हासिल कर के आसमान -ऐ -अदब पे मिसल -ऐ -हिलाल -ऐ -ईद बनकर 'हिलाल वजीर गंजवी ' ने अपना ता -अर्रुफ़ कराया है .

कम उमरी यानि नौजवानी में संजीदगी और तामेरी पहलु उनके अशआर की जीनत है .
हिलाल अदबी दिलचस्पी के साथ दीनी दुनियावी तालीम हासिल करने में ग़ैर मामूल कामयाबी का सेहरा उनके सर है और ये सब अल्लाह ताला का करम है .

वो नात मंक़बत ग़ज़ल कहते है . उर्दू अदब के हवाले से नमुन -ऐ -कलम मुलाहिजा फरमाए -
नात -नापहुंचा बहर -ऐ -सनाऐ नबी की तह को कोई
लगा के देखे है गोते हर इक शनावर ने


मंक़बत - अली का हो गया तो उम्र भर अली का हूँ
ये फैसला भी कोई बार बार होता है
मंक़बत -करबल अगर सदफ है तो गौहर हुसैन है
करबल अगर दुल्हन है तो जेवर हुसैन है

ग़ज़ल - ये हकीक़त है आज महलों की
मकबरों में शुमार होते है

ग़ज़ल - कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दू
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर

ग़ज़ल - मै कैसे डूब सकता हु वफ़ा के खुश्क दरिया में
तेरे दरिया -ऐ -उल्फत में कोई गहरी भी तो हो

मेरी दुआ है के 'हिलाल वजीर गंजवी ' को अल्लाह तबारक ताला खज़ान -ऐ -इल्म -ऐ -दीन -ओ -दुनिया क़ी दौलत से नवाज़े और हमेशा शाद -ओ -आबाद रखे . आमीन .

बा -कलम खुद
शौक़ वजीर गंजवी
Lyricist - Super cassette Industries Ltd.T-Series.

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