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तेरी रुसवाई भी तो हो ...........

फ़क़त मै क्यों रहू रुसवा तेरी रुसवाई भी तो हो ,
सितमगर तेरी महफिल में शब् -ऐ -तन्हाई भी तो हो .

तुझे पाने की ख्वाहिश में जो रख दे जान भी गिरवी ,
ज़माने में मेरे जैसा कोई सौदाई भी तो हो .

मै तुमको बेवफा कहता हु तो इसमें बुरा क्या है ,
ये माना कि तुम अपने हो मगर हरजाई भी तो हो .

वफ़ा के खुश्क दरिया में मै कैसे डूब सकता हो ,
तेरे दरिया -ऐ -उल्फत में कोई गहराई भी तो हो .

शब् -ऐ -फुरक़त क हर लम्हा सितारे गिन के काटा है ,
बिछड़ के तुझसे इक पल को हमे नींद आई भी तो हो .

मै कैसे मान लू तू हिज्र में रहता है नम्दीदा ,
तेरी आवाज़ मेरी तरह से भर्रायी भी तो हो .

मसर्रत के तराने क्या सुनाऊं साज़ -ऐ -ग़म पर मै ,
ख़ुशी के गीत गाने के लिए कोई शहनाई भी तो हो .

'हिलाल ' अपने मुक़द्दर में नहीं था वस्ल -ऐ -जानाना ,
दुआ हमने बहुत की थी मगर बर आई भी तो हो .

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 20, 2010 at 10:02pm
बेहतरीन ग़ज़ल!! ये शेर बहुत पसंद आया|

मै कैसे मान लू तू हिज्र में रहता है नम्दीदा ,
तेरी आवाज़ मेरी तरह से भर्रायी भी तो हो .

दाद कबूलिये|

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