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प्रियवर मै क्या गीत सुनाऊँ

प्रियवर मै क्या गीत सुनाऊँ
मरुस्थल सी सपाट ज़िन्दगी
तन्हा तन्हा वीरान ज़िन्दगी
यादों की अमराइयो में
किसे दूँ पींगें, किसे झुलाऊँ
प्रियवर मै क्या गीत सुनाऊँ-------
.
सूने मन के आँगन में
न कोई हलचल, न कोई राग
अतृप्त सपनों के महल में
क्या उकेरूँ और क्या भुलाऊँ   
प्रियवर मै क्या गीत सुनाऊँ

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Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 30, 2012 at 12:43pm

यादों की अमराइयो में
किसे दूँ पींगें, किसे झुलाऊँ

सुन्दर भावाभियक्ति हार्दिक बधाई स्वीकार करें

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 29, 2012 at 2:07pm

aadarniya kavita ji, saadar.

apne bhavon ko khoobsurti se piroya hai. dil ko choo gayi. badhai. 

Comment by Abhinav Arun on April 28, 2012 at 12:54pm

आदरणीय कविता जी मन के भावों को बहुत सरलता से इस काव्य रचना में पिरोया है हार्दिक बधाई इस रचना पर !!

Comment by Sarita Sinha on April 27, 2012 at 8:38pm

प्रिय कविता जी, नमस्कार,

सुन्दर भाव , सुन्दर कविता और सुन्दर शुरुआत...बहुत बहुत बधाई.....

कृपया ध्यान दे...

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