For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

::::: मेरे जिस्म में प्रेतों का डेरा है ::::: ©


::::: मेरे जिस्म में प्रेतों का डेरा है ::::: © (मेरी नयी सवालिया व्यंग्य कविता)

मेरे जिस्म में प्रेतों का डेरा है...
नाना प्रकार के प्रेत...
भरमाते हुए...
विकराल शक्लें...
लोभ-काम-क्रोध-मद-मोह...
नाम हैं उनके...
प्रचंड हो जाता जब कोई...
घट जाता नया काण्ड कोई...
सृष्टि के दारुण दुःख समस्त...
सब दिये इन्हीं पञ्च-तत्व-भूतों ने...

लालसा...
अधिक से भी अधिक पाने की...
नहीं रहा काबू मन पे मेरे...
कोशिश...
कर देखी मैंने बहुतेरी...
मन में दिया रौशन कर लेने की...
रूह में बसा था जो ईश्वर...

कोशिश...
खोज उसे लेने की...
मिल गया बसेरा...
पर ईश्वर का कोई पता नहीं...
देख कर शायद...
लापतागंज का कोई इश्तिहार...
हो समर्थ...
कर काबू मन को...
खोज लाये कोई खोये ईश्वर को...

मगर...
फिर चढ़ेगा एक प्रेत ईश्वर पर...
फिर लगेगा इश्तिहार...
लापतागंज का...
संभवतः दौर नया है...
खुद ईश्वर की भाग-दौड़ का...

शायद...
हो गया था अहसास...
मेरे ईश्वर को...
अब उद्धार चाहिए उसी को...
जो कहलाता उद्धारक था...

हा हन्त...कैसे पार पड़े...
कौने में बैठा ईश्वर...
अपना नाम ना बताऊँ...
सोचता होगा...
भीषण दानवों से...
जिन्हें बचाया जीवन भर...
वे ही अब दानव बने बैठे हैं...
अब उनसे खुद को बचाऊँ कैसे...

मैं कहता..
आ देख मिल कर, मेरे दानव साथी...
कैसे होगा...?
अब उद्धार खुद उद्धारक का...

जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 21 सितम्बर 2010 )

_____________________________________
Note :- (( मेरी उपरोक्त रचना के बन जाने के पीछे जिस रचना ने प्रेरणा का कार्य किया है
वह डॉ. नूतन गैरोला द्वारा रचित एक लघु कविता है , जोकि नीचे नाम सहित मौजूद है ))

मेरे जिस्म में प्रेतों का डेरा है |
कभी ईर्ष्या उफनती,
कभी लोभ, क्षोभ
कभी मद - मोह,
लहरों से उठते
और फिर गिर जाते ||
पर न हारी हूँ कभी |
सर्वथा जीत रही मेरी,
क्योंकि रोशन दिया
रहा संग मन मेरे,
मेरी रूह में ,
ईश्वर का बसेरा है ||
► (डॉ. नूतन गैरोला)
_____________________________________

► यदि कुछ पसंद नहीं आया हो तो Please साफ़ बता दीजियेगा.. मुझे अच्छा ही लगेगा..
► !!..धन्यवाद..!! ( Jogendra Singh )
_____________________________________

Views: 1460

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 23, 2010 at 5:19pm
थैंक्स ► नवीन भईया ... :)
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 23, 2010 at 3:09pm
बागी जी , आपका मजाक करने का अंदाज़ अच्छा लगा दोस्त ... :)
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 23, 2010 at 2:44pm
ब्रिजेश जी , यह कविता नहीं बल्कि एक श्रृंखला बन गयी है ... पहले ► नूतन, फिर मैं और अब आपने पूरी तीन कवितायेँ एक ही संवाद को अपने ही अंदाज़ में आगे बढाती हुई बन पड़ीं हैं ... बहुत सुन्दर लिखा है आपने ... आपको बधाई ... :)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2010 at 9:56am
सबसे पहले मैं डॉ नूतन जी को बधाई देना चाहता हूँ की आप के एक बेहतरीन एक काव्य रचना के प्रभाव से जोगी भाई के जिस्म मे प्रेतों का डेरा हो गया है, बहुत ही खुबसूरत कृति जोगी भाई, अब यह समझ मे नहीं आता की बधाई मैं आप को दूँ या आपके जिस्म के अन्दर बैठे प्रेतों को, बधाई हो इस शानदार कृति पर ,
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on September 23, 2010 at 6:30am
जोगिन्द्र भाई,
अभिभूत हूँ स्तब्ध भी,
और शायद
हूँ अभी निशब्द भी...
जो मालिक है हमारी ज़िन्दगी का
कैसा आज क्यों लाचार है ...?
क्या कहूं... कैसे बखानूं
और इसको सच क्यों मानू ?
जिंदगी स्वछंदता का नाम है क्या ?
ज़िन्दगी शायद बंधी है...
कायदों से ...और वोह भी ...
हम प्रबलता में ज़रा कुछ भूलते हैं...
कर्म को स्वछन्द मानव है हमेशा ..
किन्तु फल भी अपनी भूलों के
वही तो भोगते हैं....
क्यों रहें हम मुगालते में...
हम कभी उस न्याय-कर्ता
का करेंगे फैसला ...?
view full comment in my blog please...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service