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एक लड़की लापता है ...
चिंताग्रस्त ...
हड्डियों के ढाँचे सी दुबली ...
सुना है घर से अकेली निकली है ...
कहती है ज़माना बदलेगी ...

दीवारों पर गुमशुदा का ...
"प्रति" जी का इश्तिहार लगा है ...
नाम छपा मानवता ...
कोई कहे यथार्थवादी डाकू ...
कोई कहे भौतिकता का डाकू ...
उठा ले गया उसे ...

लिखा है गुमशुदा के पोस्टर में ...
किसी सज्जन को मिले तो ले आना ...
मैं बोला भईया ...
सज्जन हैं कहाँ अब ...
जो पहले ही गुशुदा है ...
उसी से काहे गुहार लगा बैठे ...
काहे गलत इश्तिहार लगा बैठे ...
या यूँ कहें मीडिया का ...
कारोबार बढ़ा बैठे ...

मानवता नाम की चिरैया ...
या लड़की जो भी कहो ...
इस नए भौतिकतावादी दौर में ...
लुप्तप्राय नहीं वरन ...
दफ़न हो चुकी समझो ...
और अब ...कौन नहीं जनता ?
मुर्दे कभी लौट कर नहीं आते ... Copyright ©

जोगेन्द्र सिंह Jogendra singh ( 18 सितम्बर 2010 )


Photography by : Jogendra Singh ( all pic's are in dist pic are taken by me.)
___________________________________________
(मेरी ऊपर वाली रचना प्रतिबिम्ब भईया की रचना से प्रेरित है...
उनकी रचना नीचे दिए दे रहा हूँ ... आप देख सकते हैं ...)

एक लड़की दुबली पतली
चिन्ताओ से ग्रस्त,
आयु कुछ हज़ार साल
सत्यता का घुंघट निकाल
घर से निकली
नवयुग के इस मेले में
लापता हो गई.
एक सड़क है - आधुनिक सभ्यता
वही से चली है
उसका पता सुना है की
नैतिकता के घोडे पर सवार
भौतिकवाद के डाकू ने
उसे उठाया है
यदि किसी सज्जन को मिले
तो घर पहुँचने का कष्ट करे
लड़की का नाम " मानवता " है
► ( प्रतिबिम्ब बडथ्वाल )


► NOTE :- यदि कुछ पसंद नहीं आया हो तो Please साफ़ बता दीजियेगा.. मुझे अच्छा ही लगेगा.. (जोगी)
▬► !!..धन्यवाद..!!

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 20, 2010 at 10:51pm
जोगी भैया बहुत सुन्दर ...दोनों ही कवितायेँ बहुत अच्छी है और अपने मंतव्य पर दृढ हैं|
मै तो बस इतना ही कहूँगा कि..अगर सावित्री जैसा जज्बा हो तो मुर्दे भी लौट कर आते हैं| उसी जज्बे कि दरकार है |
Comment by Aparna Bhatnagar on September 19, 2010 at 10:12pm
दोनों कविताएँ एक दूसरे से संवाद करती नज़र आ रही हैं ... दो अलग-अलग रचनाएँ हैं पर गौर कीजिये तो लगेगा कि एक प्रश्न कर रही है और दूसरी एक सीधा उत्तर दे रही हैं .. बिना लाग-लपेट के l एक क़ी भाषा युग का बोध कराती है तो दूसरी तटस्थ होकर वर्तमान क...ो जीती है ... पर कथ्य वही हैं -" मानवता" ...l एक सिर्फ मांग कर रही है क़ि क्या समय लौटा पायेगा इस मानवता को तो दूसरी सपाट हो कहती है क़ि क्या मुर्दे लौटकर आ सकते हैं भला ! दोनों ही लेखक बधाई के पात्र हैं l विषय प्रासंगिक है और उसे पिरोया भी बड़े संयम से है ...
एक और बात जो अच्छी लगी - जोगी जी ने साफ़गोई से प्रतिबिम्ब जी की कविता को आगे बढाया है . मंजुला जी ने जो कमेन्ट लिखा है वह सही है और हम उससे सहमत हैं . इस फोरम में हम पूर्वाग्रहों से ग्रस्त न रहें तो कविता को पढने का आनंद बढ़ जाएगा और हम सभी एक साथ आगे चल सकेंगे . जोगी जी हिंदी पर आपने जो कटाक्ष करते हुए व्यंग्य लिखा था वह भी गरिमा समेटे हुए अपनी बात कहने में सफल हुआ और आज की ये कविता भी एक सुन्दर आक्षेप से होते हुए एक राह बनती है .. फिर एक ज्वलंत प्रश्न पर छोड़ती है.. ... बधाई स्वीकार करें आप भी और प्रति जी भी :)) जो रचना अच्छी है उसका स्वागत न करें ... उस पर कुछ न लिखें ये भी संभव नहीं ...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2010 at 9:37am
लिखा है गुमशुदा के पोस्टर में ...
किसी सज्जन को मिले तो ले आना ...
मैं बोला भईया ...
सज्जन हैं कहाँ अब ...
जो पहले ही गुशुदा है ...
उसी से काहे गुहार लगा बैठे ...
काहे गलत इश्तिहार लगा बैठे ...
या यूँ कहें मीडिया का ...
कारोबार बढ़ा बैठे ...
वाह जोगी भाई वाह , कमाल की लेखनी चली है आपकी, बहुत ही उम्द्दा लिखा है , मजा आ गया ,
साथ मे आदरणीय प्रतिबिम्ब बडथ्वाल जी की रचना की तारीफ़ किये बगैर मैं नहीं रह सका,
यदि किसी सज्जन को मिले
तो घर पहुँचने का कष्ट करे
लड़की का नाम " मानवता " है,
बहुत ही दूर की सोच, बधाई है बडथ्वाल जी को, जोगी भाई यदि आप की बात हो तो मेरा आमंत्रण बडथ्वाल जी तक जरूर पंहुचा दीजियेगा कि OBO का बुलावा है ,

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