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तुम्हारी याद आती है

तुम्ही पहचान हो मेरी,
तुम ही बस जान हो मेरी,
यह तुम हो जिससे हम 'हम' हैं
यह हम हैं जिसके रग-रग मे,
बसे बस तुम हो, तुम ही हो .

तुम्हारा नाम लेकर ही,
मेरी हर सांस आती है....
तुम्हारे बिन
मेरी साँसें न आती हैं ...न जाती हैं

तुम्ही हो मायने अबतक,
हमारे ज़िंदा रहने के.....
तुम्ही कारण बनोगे,
मौत मेरी जब भी आएगी

नही मालूम मुझको,
ज़िंदगी से चाहिए क्या अब ?
तुम्हारे प्यार और दीदार का बस
आसरा हो जब.....

तुम्हे पाऊँ... न पाऊँ
इसका कोई गम नहीं मुझको.....
हर एक सांस मे एक आस है...
यह कम नहीं है क्या?

नही हो सामने तो क्या ?
खयालों मे बसे तो हो....
तुम्हारी आस मे हर सांस आती है
तो आने दो....

कहो मत, भूल जाने को....
भुलाना अब नहीं मुमकिन,
तेरे दीदार की चाहत मे मुश्किल से
ज़माने को भुलाया है....
डॉ बृजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 28, 2010 at 6:27pm
स्वयम से बात करती हुई रचना अच्छी है ,
Comment by आशीष यादव on September 28, 2010 at 6:06am
Bs tum ho. Wah, kisi me bskr ya bsakr to fir aisa hi lagta hai.

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