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हे कृष्ण तुम्हे आना होगा....

माँ के आँचल से छीन जहाँ
नवजात मृत्यु ले जाती हो..
सत्ता पैशाची हर्षित हो
इस पर कहकहा लगाती हो...

आतंकी अत्याचारी ही,
जिस कालखंड के शासक हों ,
जब स्वार्थ नीति से प्रेरित हो
शासन समाज का त्रासक हो...

जहाँ बचपन ढोर चराने में
उलझे, शिक्षा से दूर रहे...
जहाँ समझदार भी सत्यवचन
न कहने को मजबूर रहें....

जहाँ विषधर नदियों के जल में
कुंडली मार कर बैठे हों ,
जो मानदंड हों श्रद्धा के,
श्रद्धालुजनों से ऐंठे हों...

जहाँ सच वाणी ईश्वर की भी
मन में कुंठा भर जाती हो...
भयग्रस्त वृत्तियाँ हो मन की
प्रतिबन्ध नए लगवाती हों...

तुम पैदा होते कृष्ण वहीँ,
जहाँ घोर अँधेरा छाया हो
बंधन में हो मातृत्व और
संकट से मन घबराया हो

तुम बहते पानी के जैसे
कभी एक जगह पर टिके नहीं
कभी आर्तजनों की पीड़ा को
सुन कर तुम पल भर रुके नहीं ...

है देश हमारा आर्त आज
संकट का चहुँदिश डेरा है
कहीं आतंकी घटनाएँ हैं ...
कहीं आपदाओं का फेरा है..

सत्पुरुष आज हैं दमित और
दुष्टों का मान बढ़ रहा है...
इस भारतभूमि में कृष्ण आज
कैसा दुष्काल चल रहा है ...

अब तो आ जाओ कृष्ण यहाँ
अपना वह वचन निभाने को ..
दुष्टता समूल मिटाने को...
सत्पुरुषों को अपनाने को ...

अब धर्म-न्याय-स्थापन को
हे कृष्ण तुम्हे आना होगा ...
भारत के जन-जन के मन में
फिर नव विश्वास जगाना होगा ...

हे कृष्ण तुम्हे आना होगा ...
डॉ. ब्रिजेश त्रिपाठी

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2010 at 8:42am
है देश हमारा आर्त आज
संकट का चहुँदिश डेरा है
कहीं आतंकी घटनाएँ हैं ...
कहीं आपदाओं का फेरा है..
बहुत ही सुंदर रचना, कृष्ण को बुलाने हेतु कई कारण , जय हो ,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 20, 2010 at 9:48pm
बहुत सुन्दर!!!
हे कृष्ण तुम्हे आना होगा ...

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