For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक लकडहारा था..बेहद गरीब और मासूम.जबतक जंगल में कड़ी मेहनत कर लकड़ी न काटता था और उसे बेच कर कुछ पैसे न कमाता था उसके घर में चूल्हा नहीं जलता था .एकबार कई दिनों तक लगातार मूसलाधार बारिश हुई, लकडहारा जंगल नहीं जा पाया फलस्वरूप उसके घर भुखमरी की नौबत आ गयी ....खैर ..बारिश तो एक दिन थमना था सो थमी ...लकडहारा कुल्हाड़ी लेकर जंगल भागा.संयोग से उसे एक पेड़ सूखा मिल गया..उसने मेहनत से ढेर सारी लकड़ी काटी...किन्तु एक भूल हो गयी थी ..घर से वह रस्सी लाना तो भूल ही गया था ..अब क्या हो ?लकड़ी का ढेर समेटा कैसे जाये ? उसे शहर कैसे ले जाया जाये ?आस-पास तलाशने पर उसे एक मोती की लम्बी सी माला मिल गयी ..लकडहारा ठहरा नासमझ उसने उस बेशकीमती मोती की माला से रस्सी का काम लिया.. गठ्ठर बनाया और चल पड़ा शहर लकड़ी बेचने के लिए ...अब संयोग देखिये शहर में घुसते ही एक सेठ जी मानो उसका इंतजार ही कर रहे थे, लकड़ियाँ उनके घर भी समाप्त हो गयी थीं ...लकडहारा से लकड़ियों के दाम तय हुए ...तभी सेठ जी की निगाह मोती की माला पर पड़ी . सेठ जी की पारखी नज़रों ने एक झटके में ही मोती की माला को परख लिया ...तय कीमत से कुछ ज्यादा ही कीमत सेठ जी ने लकडहारा को दे दी .. अब लकडहारा ने सोचा कहीं सेठ जी का ज्यादा कीमत देने का मन बदल न जाये ...मोती की माला की कीमत का उसे कोई अंदाज़ा न था..अतः उसने पैसे संभाले और तेजी से अपने घर को भाग निकला ...अब सेठ जी ने मोती की माला को प्रेम से उठाया और एक एक मोती को यत्न पूर्वक साफ़ कर तिजोरी में रख दिया ...एक माह तक सेठजी को लकडहारा के वापस आने और मोती के माला को वापस मांगने का डर रहा .. और लकडहारे को सेठ जी द्वारा दिए गए ज्यादा पैसे वापस मांगने का डर रहा ..दोनों अपने अपने डर के चलते एक दूसरे से कभी नहीं मिले .एक महीने बाद सेठ जी ने वह मोती की माला तिजोरी से बाहर निकाली...लेकिन अफ़सोस..माले का एक एक मोती फटा हुआ था ...अब सेठ जी ने तो माला का एक एक मोती सेठ ने स्वयं साफ कर सुरक्षित रखा था ..यकीन नहीं आ रहा था यह क्या हो गया ..आश्चर्यचकित हो कर सेठ जी के मुंह से निकला ..ऐ मोती की मॉल !जब मैंने स्वयं तुझे साफ कर तिजोरी में रखा था ..तो यह आश्चर्य कैसे हो गया क़ि एक एक मोती फटा पाया गया ,ऐसा तो तब भी नहीं हुआ था जब लकडहारे ने मोती की माला से लकड़ियों को कस कर बांधा था ...जवाब मोती की माला ने ही दिया.."सेठ !..लकडहारा तो नासमझ था ..उसे मोती की कीमत कहाँ पता थी इसलिए उसने जो किया सो किया ..लेकिन तुम तो समझदार थे तुम्हे तो मेरी कीमत का अंदाज़ा था फिर तुमने बेरुखी कैसे की ? मेरा पेट तो तुम्हारी बेरुखी से फटा है सेठ"




मित्रों पात्र बदल गए हैं संदभ भी शायद बदले है किन्तु कहानी आज भी प्रासंगिक है ,अपना देश और इसकी स्वतंत्रता मोतियों की माला है... कुछ नासमझ लकडहारे (अलगाववादी) भले ही इसकी कीमत न समझ पा रहे हों किन्तु हम सब बुद्धिजीवी अपने मन में अपने-अपने स्वार्थों के चलते इसके प्रति सेठ की भांति उपेक्षा का भाव क्यों पाल रहे हैं ...देश की आज़ादी लम्बे संघर्षों के बाद मिली है यदि देख भाल में हमसे कोई त्रुटि रह गयी तो हम आने वाली पीढ़ी को कैसे जवाब देंगे?दोस्तों यह एक पुराणी लोक-कथा है जिसे मैंने नए कलेवर में सजा कर आप लोगों के सामने प्रस्तुत किया है ,यदि यह आपके ह्रदय को तनिक भी स्पर्श करती है तो ही मेरा लेखन सफल होगा...आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में आपका

Brijesh tripathi

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 17, 2010 at 8:47pm
बहुत सुन्दर और सटीक विश्लेषण......गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी...........

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 17, 2010 at 8:05pm
आदरणीय ब्रिजेश त्रिपाठी जी,
बहुत ही सुंदर और प्रेरक प्रसंग का उल्लेख किया है और उस प्रसंग को आज के हालात के साथ जोड़ने का सार्थक प्रयास किया आपने, बधाई,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
17 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service