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आंख में कैसा गंगाजल

कैसी हलचल ह्रदय में ,आंख में कैसा गंगाजल
कैसा जीवन है ये जहा, मरता है मन पल पल .


सब यहाँ लिए है नयन,पर है ये कैसा अंधापन
जीवन की सच्चाई से भाग रहा मानव हर पल


साथ नहीं कोई देता अब, कहते है मैं आता हूँ तू चल
ऐसे लोग कहा रहते है ,जो मन से होते है निश्छल ,


कौन सा ख्वाब है देखा तुमने और ये तन्हाई किस की
तन सोता है अक्सर पर मन जगता रहता  है हर पल ,


बीज बोये है बबूल के जिसने अपने उन बागों में
वही मांगता है यहाँ देखिये आम्र  के मीठे मीठे  फल


तू अब अफसोश न कर इतना, इन पैदा हालातों से "यश"
या तू पागल लगता है या फिर ये दुनिया है पागल .

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Comment by UMASHANKER MISHRA on June 11, 2012 at 11:37pm

प्रिय योगेश आपकी यह रचना पूरी तरह आदर्श भाव के साथ प्रस्तुत है

जो कवि की निश्छलता को बता रही है

कैसी हलचल ह्रदय में ,आंख में कैसा गंगाजल
कैसा जीवन है ये जहा, मरता है मन पल पल .

सब यहाँ लिए है नयन,पर है ये कैसा अंधापन
जीवन की सच्चाई से भाग रहा मानव हर पल

हर पक्ति सच्चाई बयां कर रही है बहुत ही उम्दा रचना

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