अब मुझे पता न बताओ मेरी मंजिलो का
पूझे पता है की मुझे जाना किधर है
वही से आया हू वही जाऊंगा बेफिक्र रह
चाहो तो भाल पर पढ़ लो नक्सा इधर है
लूटे नहीं इस शहर में अमीर के घर
जो लुटी है गरीबों की बस्ती उधर हैं
अमन सकूं की बातें तो होती है यहाँ फुर्सत में
मगर हर घड़ी सारे दिलों में खौफ इधर है
झूंठ को बोलते हैं लोग यहाँ सच की तरह
बयां करने पर हकीकत कांपते अधर हैं .
Comment
आशीष जी आभारी हूँ आपके स्नेह का
उमाशंकर जी बहुत बहुत धन्यवाद् आपने अपने शब्दों से जो मान दिया है आभार
योगेश जी अच्छी रचना है बधाई आपको
झूंठ को बोलते हैं लोग यहाँ सच की तरह
बयां करने पर हकीकत कांपते अधर हैं .
अंतिम पक्ति कटु सत्य को दर्शा रही है|
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