अपने भावो को शब्दों में उतारना मुमकिन न था, एक कोशिश की है मुझे मेरी त्रुटियों से अवगत कराएँ ताकि भविष्य में उनको दोहराने की भूल न करूँ
आपका योगेश शिवहरे "यश"
जो घोसले बनाते है बड़े अरमानो के साथ
ज़माने ने देखे बड़े रंज-ओ गम के साथ
अब जाये भी तो कहा जाये ये बेजुबान पंक्षी
क्या पता उन्हें जो घर में बैठे है इत्मिनान के साथ
हश्र के दिन जब हिसाब होगा बताये क्या
खुदा खुद ही बताएगा क्या होगा तेरे साथ
ये जो नाज़ करते हैं अपनी अमीरी पर अदब के साथ
क्या पता उन्हें नहीं जायेंगे सिर्फ कफ़न के साथ
अब क्या क्या होने लगा है इस ज़माने में
सलाम भी ठोकते है लोग बड़ी तकल्लुफ के साथ
हमें कोई गम तो नहीं "यश "मगर एक शिकायत बड़ी है
कुछ करो तो ऐसा करो की नज़र मिला सको खुद के साथ
Comment
सादर प्रणाम रेखा जी अपने सब्दों से इन कली रुपी पंक्तियों को जो स्नेह दिया है ,,,,आभार
योगेश शिवहरे जी आपकी रचना बहुत पसंद आई ओ बी ओ से जुड़े रहिये रचनाओं में निखार आता जाएगा और त्रुटियाँ भी पता चलती जायेगी बहरहाल दाद कबूल करें इस सुन्दर रचना के लिए
बहुत बहुत धन्यवाद् अलबेला भाई जी आगे से इन गलतियों से खुद को जुदा करने की कोशिश करूँगा.इतना स्नेह के लिए सादर आभार
सम्मान्य योगेश शिवहरे जी,
बहुत अच्छी बातें कही आपने अपनी रचना में............थोड़ा सा टंकण की त्रुटियों पर ध्यान दे कर उन्हें दूर कर लें तो बेहतर होगा
धन्यवाद
आदरणीय योगेश शिवहरे जी , आपकी यह रचना आगाज है तो अंजाम न जाने क्या होगा ........
अब क्या क्या होने लगा है इस ज़माने में
सलाम भी ठोकते है लोग बड़ी तकल्लुफ के साथ
आदरणीय योगेश शिवहरे जी नमस्कार ! सुन्दर अल्फाजों से सजी ग़ज़ल है आपकी , अच्छी लगी !
ये तो कोशिश की है सिर्फ भावों को सब्दों में उतरा है मुझे ये पता नहीं है की ये कविता है या ग़ज़ल है जैसी थी आपके समक्ष प्रस्तुत की और आपका स्नेह मिला अप बताने का कष्ट करें की ये कौन सी विधा में लिखी है
आदरणीय प्रदीप जी आपने जो सब्दो के फूल दिए है और जो स्नेह दिया उसके लिए आभार
आदरणीय योगेश जी, सादर
बहुत सुन्दर भाव के साथ आपने ये रचना प्रस्तुत की है, बधाई,
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