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काँटा और गुहार :: © ( क्षणिका )


आसान नहीं है ...

पाँव से काँटा निकाल देना ...

हाथ बंधे हैं पीछे और ...

उसी ने बिखेरे थे यह कांटे ...

निकालने की जिससे ...

हमने करी गुहार है ...


जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 02 अक्टूबर 2010 )

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Views: 288

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Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on October 6, 2010 at 1:54am
धन्यवाद नवीन भाई !!
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on October 4, 2010 at 2:12am
अजी @ बागी जी ,

कहाँ का दर्द कहाँ लिए जाते हो ... ?
जिससे लिया उसी क्यूँ नहीं लौटा तुम जाते हो ...

जोगेन्द्र सिंह
.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2010 at 8:36pm
बहुत खूब जोगी भाई , आप की क्षणिका पढ़ बरबस एक गीत के कुछ शब्द याद आ गये ..........
तुम्ही ने दर्द दिया तुम ही अब दवा देनाssssssss

कृपया ध्यान दे...

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