कहीं लब पर तराने हैं मुहब्बत के फ़साने हैं.
सुहाने दिन तेरी आगोश में मुझको बिताने हैं.
फिजा में ये हवायें भी तेरे दम से महकती हैं,
सुना है हीर की खातिर कई रांझे दिवाने हैं...
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यहाँ सब लोग तेरे हुश्न के किस्से सुनाते हैं.
अधर ये शबनमी उसके मुझे अक्सर रिझाते हैं.
बहुत बेचैन है ये दिल उड़ी है नींद आँखों से,
कटीले दो नयन तेरे बहुत मुझको सताते हैं..
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समयाभाव के चलते जल्दबाजी में दो मुक्तक लिख दिए हैं गुरुजनों एवं अग्रजों से निवेदन है की उचित मार्गदर्शन एवं अपना आशीर्वाद प्रदान करें.
Comment
बहुत रसपूर्ण मुक्तकों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें
बड़े ही ख़ूबसूरत मुक्तक प्रस्तुत किये आपने मृदु जी! बधाई हो!
ये सुन्दर मुक्तक सच में तुम्हारे दिल से निकले मोती की तरह हैं मृदु जी बधाई
क्या कहने शैलेन्द्र जी.......
बहुत सुन्दर और मनभावन मुक्तक.........
--वाह !
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