सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट है पर माल नहीं है बाबाजी
क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी
दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है
जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी
मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो
घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी
देश बेच कर खाने वाले लोगों का
लोहू शायद लाल नहीं है बाबाजी
उनकी ममता घुट घुट कर मर जाती है
जिनके अपने लाल नहीं है बाबाजी
मंहगाई के बिच्छू डंक चुभाते हैं
मोटी अपनी खाल नहीं है बाबाजी
हास्यकवि 'अलबेला' ऐसा घोड़ा है
जिसके खुर में नाल नहीं है बाबाजी
-अलबेला खत्री
Comment
आपका हार्दिक हार्दिक आभार राजेश जी......
देर आयद.............
साभार
अरे अरे मै लेट हो गई पढने में पहले तो ग़ज़ल को हास्य रस में लपेट कर जो समाज पर व्यंग्य का चांटा मारा है उसकी खूब तारीफ करने दो दूसरे तारीफ़ करनी पड़ेगी उन बारीकियों को ताड़ने वाली नजरों की ,वो कहते हैं न क्या क़यामत की नज़र रखते हैं ..आदि आदि एक अंक का बिंदु भी उनके एक्सरे में आ जाता है झट से |
आदरणीय अम्बरीश जी,
बड़ी कृपा की आपने.........धन्यवाद
मैं इसे सुधार दूंगा और भविष्य में भी ध्यान रखूँगा . हाँ, एक निवेदन करना चाहता हूँ कि मुझे ग़ज़ल की जानकारी न के बराबर है. मैं तो एक लय पकड़ लेता हूँ और उसी पर लिखता रहता हूँ . इस कारण कभी कभी मेरे ख़ुद के दोषपूर्ण उच्चारण से भी मामला मीटर के बाहर हो जाता है
__जब बह्र की जानकारी प्राप्त कर लूँगा तब ये कमी दूर हो जायेगी, लेकिन तब तक कृपया यों ही ध्यान देते रहिएगा
______सादर
:-)
कितना अच्छा लगेगा
जब कर विभाग वाले कहेंगे
टिप्पणी कर !
और आप को करनी ही पड़ेगी....हा हा हा
सादर
//मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो
घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी
मंहगाई के बिच्छू डंक चुभाते हैं
मोटी अपनी खाल नहीं है बाबाजी
हास्यकवि 'अलबेला' ऐसा घोड़ा है
जिसके खुर में नाल नहीं है बाबाजी//
आदरणीय अलबेला जी, बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आपने .....जीवन से सारे रंगों को समेटे हुए सभी अशआर एक से बढ़कर एक हैं ......इस निमित्त हमारी ओर से दिली बधाई स्वीकारें .....
निम्नलिखित मिसरे को पुनः देख लीजियेगा यह बेबह्र हो गया है |
२ /१ /२/१ / २ /२ /२ /२ /२ /२ /२ २
दे/श/ बे/च/ कर/ खा/ने/ वा/ले/ लो/गों/ का
सुझाव : बेच के स्थान पर 'लुटा', 'चबा' अथवा जो भी आपको उपयुक्त लगे .....
उदाहरण
२ /२ /२ /२ /२ /२ /२ /२ /२ /२ /२
दे/श च/बा/ कर /खा/ने/ वा/ले/ लो/गों/ का
सादर
...प्रभु लगता है टिपण्णी पर टेक्स लगवाओगे..... ये टैक्स लगाने वाली टेक्सी सरकार देख रही है हा हा हा
जय हो जय हो
सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट है पर माल नहीं है बाबाजी
क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी
वाह वाह .....
आप गलत बयानी कर रहे हैं जनाब !
ओ बी ओ में ऐसा करना सख्त मना है ....भले ही लोग मानते नहीं, जहाँ जहाँ जो जो करना मना होता है, वहीँ जा कर वो वो कर डालते हैं . आपके भी ढंग कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं
__आप असत्य कहते हैं कि आपने मुफ़्त में माल पचाया है जबकि सच ये है कि आपने दो बार पेमेंट की है
__आपकी दो दो टिप्पणियां किसी पेमेंट से कम है क्या .....हा हा हा हा हा हा
___कहो, कैसी रही.......
___सादर
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