दांत भींच कर उसे दबाऊं
फिर भी उसको रोक न पाऊं
निकले बाहर लगती फाँसी
क्या सखि खाँसी? नहिं रे हाँसी
कदम-कदम पर उसका पहरा
आँख का अंधा कान का बहरा
चरण चांपता रहे निपूता
क्या सखि नेता? नहिं सखि जूता
बड़े बड़े फन्ने खां आये
लेकिन उसको हिला न पाए
उलटे कब्र स्वयं की खोदी
क्या सखि राहुल? नहिं सखि मोदी
सारा जग जिसका दीवाना
सब गाते हैं उसका गाना
ऐसा वैसा जैसा तैसा
क्या सखि सावन? नहिं सखि पैसा
जाड़े का जब मौसम आये
नख-शिख तक मेरे छा जाये
सुखद लगे वह तन लिपटाई
क्या सखि साजन? नहीं रजाई
जब-जब आये प्यास बुझाए
तन-मन में आनन्द जगाये
प्यासी देह खिले मस्तानी
क्या सखि साजन? नहिं सखि पानी
नहिं वह काला, नहिं वह गोरा
लोहे जैसा लगे कठोरा
समय का अपने वह सरदार
क्या सखि साजन? नहीं कलदार
जब-भी उसका सुर चढ़ जाये
अंग अंग सारा दुःख जाए
तोड़ हमेशा देता यार
क्या सखि साजन? नहिं रे बुखार
-अलबेला खत्री
Comment
जय हो जय हो .......अलबेला जी ....:-)
आपका ही वरदहस्त है
बन्दा कहाँ सिद्धहस्त है
_____अलबेला अलमस्त है
स्वागतम अलबेला जी ! कहमुकरी रचने में आप तो सिद्धहस्त होते जा रहे हैं ! :-)
आदरणीय अम्बरीश जी,आपके इस स्नेह और करम पर मुझ जैसा खुशनसीब ख़ुश क्यों न हो
___विनीत हूँ.......आभारी हूँ प्रभु !
वो जब आये रौनक लाये
उसकी आमद सबको भाये
उस पर प्रभु का है आशीष
क्या सखि साजन? नहिं अम्बरीष.....हा हा हा हा हा हा हा
___बुरा न मानो सावन है, सावन है मनभावन है
सुबह-सुबह जो हमें हँसाये
तन-मन ये सारा खिल जाये
ओ बी ओ पर जमा अकेला
ऐ सखि साजन ? नहिं अलबेला !
वाह आदरणीय अलबेला जी ! सुंदर कहमुकरियों के माध्यम से अमीर खुसरो की याद ताज़ा करा दी आपने .......हार्दिक बधाई स्वीकारें मित्रवर .....जय ओ बी ओ!
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