For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कवितायेँ कैसे बनती है...............!!

कविताये कैसे बनती है 

कुछ खबर नहीं होती 
बस ..........................
दिल की कुछ भावनाएं होती है 
जो शब्दों का रूप लेकर 
कागज पर उतर आती है
और कवितायेँ बन जाती है
कवितायेँ कैसे बनती है........................
कवितायेँ .................
कभी दर्द से जन्म लेती है
कभी गम का रूप होती है
कभी दिल की ख़ुशी की पहचान बनती है
तो कभी विरोध के लिए लिखी जाती है
कवितायेँ कैसे.....................
कवितायेँ .................
जो सच्चाई से भरी होती है
कभी समाज के लिए , देश के लिए 
तो कभी किसी खास के लिए लिखी जाती है
कवितायेँ जिनमे नफरत नहीं होती
कवितायेँ तो बस प्यार से लिखी जाती है
कवितायेँ कैसे.....................
कवितायेँ.................
जो समाज का आईना होती है 
कवितायेँ ................
जो "बस यूँ ही" बन जाती है 
कवितायेँ .............
जो उडती है मन के आकाश में 
कवितायेँ ........
जिनकी कोई सीमा नहीं होती
कवितायेँ ...................
जो एक कवि/ कवियत्री की भावनाओ को व्यक्त करती है
कवितायेँ कैसे........................
कवितायेँ .....................
जो खुद में बहुत कुछ समेटे होती है
कभी-कभी बेनाम ही रह जाती है
कवितायेँ.................
तलाश करती है अपने अस्तित्व को 
प्रकाशन विभागों की दुनिया में 
लेकिन अधिकतर खाली हाथ ही लौट आती है
कविताये कैसे............
कवितायेँ ..............
होती तो है एक कवि/कवयित्री के विचारो के अक्स 
मगर पूछो उनसे कि कवितायेँ कैसे बनती है
तो एक ही जवाब आता है.................
कवितायेँ न जाने कैसे बनती है........
कवितायेँ तो "बस यूँ ही" बनती है ...
जैसे भी बनती खुद-ब-खुद बनती है
कवितायेँ कैसे बनती है...............!!

Views: 1428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sonam Saini on August 17, 2012 at 11:26am

आदरणीय सुरेंदर कुमार जी नमस्कार
जय श्री राधे
रचना को पसंद करने के लिए आभार!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 13, 2012 at 7:20pm
 
कवितायेँ न जाने कैसे बनती है........
कवितायेँ तो "बस यूँ ही" बनती है ..
सोनम जी अच्छा परिभाषित किया आप ने कविताओं को ..सच में ये बनाये नहीं बनती लेकिन जब मन में भावों के बादल उमड़ने शुरू हो जाते हैं तो रोके नहीं रुकते बरस कर ही रुकते हैं और इंतजार होता है  एक कागज और कलम का ...कितनी जल्दी मिल जाए..हाथ में आये मोती लुढकते सागर में गोता लगाने न चले जाएँ  ...कवि का मन बड़ी लम्बी उड़ान भरता है कल्पनाओं का विशाल आसमा आंचल पसारे उसे चुम्बक सा खींचता ही चला जाता है ...समाज का दर्द , खशी गम सब झलक जाता है ...काश सब सच्चाई का  दामन थामे उड़ते चलें .. बधाई ..
जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by Sonam Saini on August 9, 2012 at 9:27am

Thanks a lot Arun ji

Comment by Sonam Saini on August 9, 2012 at 9:26am

ये कविता आपके दिल तक पहुची , ये इसकी और मेरी दोनों की ही खुस्किस्मती है,
आपका अनमोल समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Sonam Saini on August 9, 2012 at 9:24am

इतनी सारी तारीफ करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अम्बरीश जी

Comment by Sonam Saini on August 9, 2012 at 9:23am

आदरणीय कुशवाहा सर ,
कविता को पसंद करने के लिए और तारीफ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Sonam Saini on August 9, 2012 at 9:22am

Thank you very much ashok kumar sir

Comment by Sonam Saini on August 9, 2012 at 9:21am

kavita ko pasand krne ke liye dil se aabhar rekha mam, thank you very much

Comment by Sonam Saini on August 9, 2012 at 9:21am

Bahut bahut shukriya yogi sir

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2012 at 11:56am

वाह कविता की इतनी सुन्दर परिभाषा क्या बात है , बधाई स्वीकार कीजिये सोनम जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
13 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
17 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
yesterday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service