मेरे सपनो का भारत ऐसा तो नहीं था
इतना कमजोर , इतना खोखला
ऐसा देश तो मैंने कभी चाहा ही नही था
बाहर से जितना साफ अंदर से उतना ही गन्दा
मेरे सपनो का भारत ....................
सोचा था मैंने तो कि ये चमन खूब महकेगा
अपने परिंदों के चहकने से खूब चहकेगा
मगर ये क्या --- इसे तो इसके ही फूलो ने कांटे चुभोये
लहू देशभक्तों का बो कर भी गद्दार उगाये
मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था
मेरे सपनो का भारत ऐसा ......................
.
मैंने चाहा था क्या , ये कैसा हो गया
रूप आधुनिकता का लेकर, अपनी ही संस्कृति से जुदा हो गया
प्यार से जिस मिटटी को सींचा था पूर्वजो ने
आज उसी में नफरतो के बीज उग गये है
जहाँ रहते थे मिलकर प्यार से हर मजहब के लोग
उसी देश में आज भाई - भाई के दुश्मन हो गये है
मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था
मेरे सपनो का भारत ऐसा .........................
राम की भूमि अब राम की न रही
यहाँ रावण का देखो अधिकार हो गया है
मिल गई है आजादी विदेशियों से हमें
लेकिन अपना ही घर अब डराने लगा है
कौन जाने कब, कौन किसे लूट ले
खून अपना ही जब पानी हो रहा है
मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था
मेरे सपनो का भारत ऐसा...............
जो उगाता है अन्न , वही भूखा रह जाता है
पेट भरता है सबका मगर देखो न
अन्नदाता ही अपना .............
लाचार और गरीब कहलाता है
अब कहूँ और क्या मैं तो लुट सा गया
मेरे सपनो का भारत जाने कहाँ खो गया
मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था
मेरे सपनो का भारत ऐसा...............
Comment
निराशा अच्छी बात नहीं
कदम से कदम मिलाओ
भारत को महान बनाओ.
सोचा था मैंने तो कि ये चमन खूब महकेगा
अपने परिंदों के चहकने से खूब चहकेगा
बहुत सुन्दर सपने थे किन्तु विदेशी परिंदों ने डेरा डाल दिया और इन सपनों को सपना ही बना दिया. बधाई सोनम जी.
नमस्कार महिमा जी..........
Welcome back
महोत्सव में भाग लेना चाहती थी लेकिन ले नही पायी, शनिवार और रविवार को मेरी छुट्टी होती है
और महोत्सव भी इन दो दिनों में ही होता है इसीलिए रह गयी...............!!
kavita ko pasand krne ke liye bahut bahut shukriya .............
शुक्रिया रेखा मैम, आपने अपना कीमती समय दिया
thanks a lot.................
सोचा था मैंने तो कि ये चमन खूब महकेगा
अपने परिंदों के चहकने से खूब चहकेगा
मगर ये क्या --- इसे तो इसके ही फूलो ने कांटे चुभोये
लहू देशभक्तों का बो कर भी गद्दार उगाये
मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था
मेरे सपनो का भारत ऐसा ......................
सोनम जी नमस्कार ... बढ़िया प्रस्तुति है .. बधाई आपको .. महोत्सव में क्यों भाग नहीं लिया ?
ji Bhawesh ji
आशाएं तो जिन्दा है ही ................बहुत बहुत धन्यवाद कविता को पसंद करने के लिए
Thank you very much yogi sir
जो उगाता है अन्न , वही भूखा रह जाता है
पेट भरता है सबका मगर देखो न
अन्नदाता ही अपना .............
लाचार और गरीब कहलाता है.अति सुंदर अभिव्यक्ति सोनम जी ,बधाई
बहुत खूब ! कितने सुन्दर सपने संजोये थे अपने भारत के लिए !
आजकल भारत में एक जाती पाई जाती है " नेता" , हम सबके सपनों पर पानी फेर दिया इस जाती ने !
सारे प्राकृतिक सम्पदा को लूट कर स्विस बैंक में जमा कर दिया , इस सम्पदा के बूते ही तमाम लोगों के सपने साकार होते ! लेकिन करता-धर्ता ही लुटेरे हो गए ! फिर भी हमारी आशाएं जीवित हैं !
राम की भूमि अब राम की न रही
यहाँ रावण का देखो अधिकार हो गया है
मिल गई है आजादी विदेशियों से हमें
लेकिन अपना ही घर अब डराने लगा है
कौन जाने कब, कौन किसे लूट ले
खून अपना ही जब पानी हो रहा है
मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था
मेरे सपनो का भारत ऐसा...............
बहुत सुन्दर , सच कहा आपने यही हाल है इस देश का ! सार्थक एवं सुन्दर शब्द सोनम जी ! बधाई
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