क्या लिखूँ अब मैं
सब तो लिख दिया मैंने
अपने दिल की बाते
टूटे ख्वाबों की यादे
सब..............
क्या लिखूँ अब मैं................
सब तो लिख दिया मैंने.............................
जिन्दगी----- कल भी तो ऐसी ही थी
कुछ भी तो नही बदला
कल भी जी रहे थे बिन अपनों के हम
और आज भी तो जी ही रहे है............
कुछ भी तो नही बदला
क्या लिखूँ अब मैं......
सब तो लिख दिया मैंने..............
जब सीखा था अपने दिल को कागज़ पर उतारना
तो सबसे पहले दर्द चला आया था ........
लोग आये दोस्त बने और चले गये
मगर ये दर्द आज भी है मेरे साथ जो कल भी था.......
अब और क्या लिखूँ मैं
सब तो लिख दिया मैंने.............
अपने बचपन के किस्से
माँ की कहानियां
भाई बहनों से लड़ना
दादा जी की निशानियाँ .
पापा का प्यार
मम्मी की कुर्बानियां ........
सब तो लिख दिया मैंने
अब और क्या लिखूँ मैं..........
सब तो लिख दिया मैंने..............
सब तो लिख दिया मैंने.......!!
Comment
सात समंदर की मसि करों,लेखनी सब बन राय, धरती रो कागद करों,हरी गुण लिख्या न जाय ।
अभी बहुत कुछ लिखना बाक़ी है.
भावों को यूं ही कलमबद्ध करती रहिये ........सुन्दर, सहज सम्प्रेषण ......बधाई सोनम जी
सोनम जी नमस्कार..
बहुत ही भावपूर्ण रचना.....
फूल सिंह
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