For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(सब से पहले यहीं पर प्रस्तुती कर रहा हूँ इस रचना की , आशीर्वाद दीजियेगा)


जलने दो मुझे जलने दो ,अपनी ही आग में जलने दो .
ये आग जलाई है में ने , मुझे अपनी आग में जलने दो .

तू मेरी चिंता मत करना ,ठंडी आहें भी मत भरना ;
मैं जलता था मैं जलता हूँ ,सम्पूर्णता को मचलता हूँ ,
मन मचल रहा है मचलने दो ;मुझे अपनी आग में जलने दो .


दाहक,दैहिक पावक न ये ,मानस तल का दावानल है,
ज्वाला मैं जन्म पिघलने दो ,मन को शोलों में ढलने दो
मुझे जलने दो ,अपनी ही आग में जलने दो

जल बिना मुझे जल जाने दो ,विषबेल सुनो!पल जाने दो ;
धज्जी धज्जी ,टुकड़ा टुकड़ा , अब इस जीवन को गलने दो ,
मुझे जलने दो ,अपनी ही आग में जलने दो

तन तपता है ,तन प्यासा है, मन मेरा मोर रूआंसा है;
जंगल में भटका भटका सा, है मारीचिका में अटका सा;
जल बिन थल में इसे जलने दो ,अपनी ही आग में जलने दो

उड़ मेघ जो काले आयें भी , जल थल जल थल कर जाएँ भी ,
सौदामिनी चमके दमके भी , गहन गगन घोर नभ चमके भी ,
सौदामिनी से गले मिलने दो ,अपनी ही आग में जलने दो

ओ मीत हमारे तू प्यारा , तू प्यारा और पराया भी ;
तू सिन्धुरी सी छह मेरी और है तुझे युग से चाहा भी ;
तू अपने को मत छलने दे ,अपनी ही आग में जलने दो

दीप जीरवी

Views: 386

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 10, 2010 at 12:52pm
दीप साहब बधाई हो, बहुत ही सुंदर और ससक्त रचना, गुनगुनाने का जी चाहता है , शानदार है यह ,
दाहक,दैहिक पावक न ये ,मानस तल का दावानल है,
ज्वाला मैं जन्म पिघलने दो ,मन को शोलों में ढलने दो
मुझे जलने दो ,अपनी ही आग में जलने दो,
बहुत खूब ,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 10, 2010 at 8:51am
बहुत सुन्दर
तप कर ही तो निखार आता है, वीर रस से ओत प्रोत रचना के लिए बधाई|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service