ससुर जी ये कब का, तूने बैर है निकाला,
काहे अपनी बेटी को, सर पे मेरे डाला |
लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,
साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |
पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात नहीं,
फिल्म देखे रात नहीं, अटका है निवाला |
मान गया रूप बड़ा, गुण भी कोई चीज है,
बोले बिना जान सके, क्या कहे घरवाला ||
Comment
भाई अजीतेन्दुजी, सर्वप्रथम अपने प्रयास के लिये बधाई स्वीकारें.
वस्तुतः आपकी घनाक्षरी वार्णिक छंद होने के लिहाज से सम्यक है. किन्तु, वार्णिक छंदों में भी निहित शब्दों को मात्राओं की अंतर्धारा को संतुष्ट करना होता है. अन्यथा रचना अपठनीय हो जाती है. इस ओर गणेशभाई ने भी इशारा किया है. वैसे इस में अभी और सुधार की आवश्यकता है.
वैसे आपकी संलग्नता आपके सफल होने का इशारा कर रही है. हार्दिक बधाई.
वाह वाह बागी जी........
मैं भी सहमत
प्रिय गौरव जी, बहुत ही खुबसूरत भाव पिरोया है इस घनाक्षरी में, किन्तु गेयता बाधित है, जैसा की आप जानते ही होंगे कि घनाक्षरी कि एक खास गायन शैली है, मैं आपकी घनाक्षरी में बिलकुल मामूली हेर फेर कर गेयता में लाने का प्रयास किया है, जरा गुनगुना कर देखिये , कुछ बात बन रही है क्या ? वैसे इस शानदार कथ्य पर अनेकानेक बधाइयाँ |
ससुर जी ये कब का, तूने बैर निकाला है ,
काहे अपनी बेटी को, सर मेरे डाला है |
लड़की है या वो फिर, बकबक की टोकरी,
साल भर हुआ नहीं, सरका दिवाला है |
पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात नहीं,
फिल्म देखे रात नहीं, अटका निवाला है |
मान गया रूप बड़ा, गुण भी है चीज कोई,
बिन बोले जाने जो भी, कहे घरवाला है ||
बड़ी मुश्किल हो गयी भाई आपको तो......
____राम ही राखे....हा हा हा
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