जब जब हैं आतंकी आये
बिल में चूहे सा घुस जाये
खो जाए उसकी आवाज़
क्या सखि नेता? नहिं सखि राज!
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नाम जपे नित भाईचारा.
भाई को ही समझे चारा
ऐसे झपटे जैसे बाज़
क्या सखि नेता? नहिं सखि राज!
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प्लेटफार्म पर सदा घसीटे
मारे दौड़ा दौड़ा पीटे
इम्तहान क्या दोगे आज
क्या सखि पोलिस ? नहिं सखि राज !
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चलती जिसकी अज़ब गुंडई
कहे, निकल ले, छोड़ मुम्बई
उठा-पटक जिसका अंदाज़
क्या सखि सत्ता? नहिं सखि राज !
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खुराफात में जिसका है मन
जिसका उत्तर भारत दुश्मन
दबंगई नित जिसका काज
क्या सखि भाई? नहिं सखि राज !
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लगता है थोड़ा सा खिसका
खानदान सिरफिरा है जिसका
क्षेत्र-वाद का छेड़े साज
क्या सखि गोरा? नहिं सखि राज !
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वैसे तो वह बना कसाई
फिर भी है अपना ही भाई
दें सद्बुद्धि जिसे प्रभु आज
क्या सखि जालिम? नहिं सखि राज !
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--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
आदरणीय अलबेला जी, बहुत खूबसूरत कह मुकरी रची है आपने .....बधाई मित्र ....
सब हैं गाने को पाबन्द = १५ मात्रा चलेगी
असलम, एंथनी या अरविंद = १६ मात्रा /पर प्रवाह बाधित है | सुझाव: "असलम रोजी या अरविन्द"= १५ मात्रा
हो बीवी या हो खाविंद = १५ मात्रा चलेगी.......................सुझाव : गाये बीवी या खाविंद = १५ मात्रा
ऐ सखि गाना ? नहिं जयहिंद!= १५ मात्रा चलेगी
सादर ...जय हिंद !
आदरणीय अम्बरीश जी, सादर अभिवादन.
बज रहे थे सुन्दर राग
था बहुत प्रेम अनुराग
कौवा कोयल सा कूका
लगाता रहता हर दम आग
क्या भाई आतंकी ? नहीं भाई राज.
बधाई.
भाईजी, आपके जयहिंद को मेरा जयहिंद !
सब हैं गाने को पाबन्द
असलम, एंथनी या अरविंद
हो बीवी या हो खाविंद
ऐ सखि गाना ? नहिं जयहिंद !
___इसमें अन्तिम पंक्ति में १५ मात्रा चलेगी ? नहिं चले तो कृपया सुधार करें
सादर
वाह आदरणीय अलबेला जी वाह .......निर्दोष कह मुकरी के माध्यम से एकदम सत्य कहा आपने ....आदरणीय सौरभ जी के प्रेम, स्नेह, ज्ञान व समर्पण के आगे हमारे आपके साथ-साथ ओबीओ के सभी सदस्य भी नतमस्तक हैं .............जय हो जय हो आदरणीय ....जय ओ बी ओ ....जय हिंद
आपको नमन करते हुए एक और.........
मधुर मधुर है उनकी भाषा
सबके मन की वे अभिलाषा
उनके आगे मैं नत शीश
ऐ सखि सौरभ ? नहीं अम्बरीश
___सादर भाई जी.........
अनुमोदन के लिए धन्यवाद आदरेया राजेश कुमारी जी ! जय ओ बी ओ ! जय हिंद !
वाह आदरणीय अलबेला जी वाह ..........क्या निर्दोष और तुरंता कह-मुकरी कही है .....हार्दिक बधाई मित्र ...
लीजिए एक उपहार हमारी ओर से भी .....
रोज रात्रि में मंच जमाते
ओबीओ पर हमें हँसाते
ले जो पंगा वो है झेला
ऐ सखि! साजन ?नहिं अलबेला |
सादर
जय हो जय हो अम्बर जी
आपके लिए कुछ भी कहना सूरज को मोमबत्ती दिखाने वाली बात है ..लेकिन एक कह-मुकरी तो कुबूल कर ही लीजिये.............
कविता के वो कारीगर हैं
शब्द शिल्प के बाज़ीगर हैं
सौ में सौ हैं उनके नम्बर
ऐ सखि साजन ? नहिं सखि अम्बर
___सादर
जय हो जय हो आदरणीय अलबेला जी .....एक कह मुकरी आपके प्रति ..........
क्षण-क्षण में वह हमें हँसाये
पल-पल प्रमुदित मन कर जाये
लग जाये खुशियों का मेला
ऐ सखि! साजन ?नहिं अलबेला |
सादर
इस विस्तृत जानकारी का बड़ा लाभ हुआ और होगा . जिनके मन में भी कह-मुकरी को लेकर मात्रा सम्बन्धी कोई प्रश्न होंगे तो वह अब अपना उत्तर पा गये हैं
धन्यवाद आदरणीय अम्बरीश जी..........
सादर
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