हमको देखे बिना उसने हाँ कह दिया
मेरे खाना-ए-दिल को मकाँ कह दिया
चाँद तारे मयस्सर मुझे हो गए
माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया
आग तडपी तपिश तिल-मिलाने लगी
सर्द से कोहरे को धुआँ कह दिया
छोड़ के मुझको जाँ मेरी जाँ ले गयी
बेबफा जब मिली जाने-जाँ कह दिया
हम गरीबों की किस्मत में कैसा महल
झोपडी को ही सारा जहाँ कह दिया
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय भाई विन्ध्येश्वरी जी सादर नमन
आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपकी दाद मिली
आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय सचिन जी सादर नमस्कार
आपकी सराहना पा कर एक उत्साह आ गया है
अपना ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
आदरणीय संदीप जी ,
आदरणीय सतीश मातपुरी जी सादर प्रणाम
आपकी सराहना पा कर लेखन को बल मिला है
अपने ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
आदरणीय वीनस जी सादर नमन
आपकी बधाई पा कर मन प्रसन्न हो उठता है
या यूँ कहूँ की लेखन में इक नयी जान आ जाती है
अपना ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
तहे दिल से शुक्रिया आपका इस जर्रानवाजी के लिए
खुबसूरत ख्याल .... सुन्दर पेशकश ... बधाई संदीप जी
बढ़िया शेर कहे हैं
बधाई
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