अभी कुछ देर पहले ही वो लौटा था,
घर पर आया तो कल की फिक्र में था,
बच्चे दिन से इंतज़ार में थे उसके घर आने के,
पर वो उनसे बात भी न कर सका,
वो कल की जल्दी में था,
उसने कल की तैयारी भी कर ली थी रात ही से,
जैसे वक्त बिलकुल भी नहीं हो पास उसके,
कल उसको सुबह ज़रा जल्दी निकालना था,
किसी से मुलाक़ात थी, कारोबार के सिलसिले में,
वक्त और जगह भी मुकर्रर थे मुलाक़ात के लिए,
सुबह के लिए कुछ कपड़े भी निकले उसने,
अपने कागजों को पढ़ा और जांचा उसने,
बच्चे कुछ पूछने आए तो वो झल्ला कर बोला,
कल को आना तो बताऊंगा अभी जल्दी है,
बच्चे हैरान थे, की आखिर वो कल कब आएगा,
यही सुनते थे वो जबसे होश संभाला था,
सोने से पहले एक आखरी बार उसने,
दीवार पर टंगी घड़ी से अपनी घड़ी को जांचा,
सुबह हुई, सूरज भी निकला,
वो दीवार घड़ी अब भी समय बता रही थी सही,
वो कपड़े, वो कागज अब भी ज्यों के त्यों पड़े थे,
जो उस मेज पर कल रात उसने रखे थे,
सब कुछ वही था, कुछ भी तो नहीं बदला था,
ये वही सुबह थी जिसका उसे इंतज़ार था बेसब्री से,
वो सुबह जिसका उसने बेसब्री से इंतज़ार किया,
उसने सोचा भी नहीं था, वो सुबह रूठ जाएगी,
वो आदमी जिससे उसे मिलना था, वो वही हैं,
वो जगह जो मुकर्रर थी वो वहीं है,
कुछ भी तो नहीं बदला उस एक रात में,
बस एक वो ही चला गया,
जिसे उस रात में भी इस कल का ही इंतज़ार था,
वो कल जो आया तो सही,
पर जिसने बीती रात इस कल की तमन्ना की,
वो आज खुद एक कल बन कर रह गया..
Comment
कितना सुन्दर वर्णन है वक़्त में कैद होते और कल को सजाने में आज को खोते समाज का, बहुत बधाई आदरणीय पियूष कुमार जी
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