आते जाते पहाड़ी जंगलों के रास्ते,
टेढ़ी मेढ़ी सी सुनसान सड़क के किनारे,
एक झुंड बैठा था कुछ बंदरों का,
मस्त थे वो सब मस्ती में अपनी,
कूदते-फाँदते कभी इस डाली,
तो कभी उस डाली,
कभी उछलते कभी झपटते,
आपस में लड़ते-गिरते,
एक पल में वो नीचे दिखते,
अगले ही पल पेड़ पे ऊंचे,
कुछ उनमें थे नन्हें बच्चे,
जो माँ की पुंछ से खेल रहे थे,
गाड़ी का ज्यों ही शोर हुआ,
सारे लपक पड़े ऊंचे पेड़ों पर,
गिर पड़ा बच्चा एक नन्हा सा,
उछला था वो भी तेजी से,
झट कूदी माँ उसकी नीचे,
लंबी कतार के सामने, गाड़ियों की,
खड़ी हो गई, उसे फिक्र न थी कोई,
लपक कर छांती से उसकी,
वो बच्चा कुछ बेफिक्र सा हो गया था,
माँ ने उसकी देखा उसे हर ओर से टटोल कर,
फिर एक भाव निश्चिंतता का,
लिए अपने चहरे पर,
वो भी उछल कर जा बैठी एक डाली पर,
एक आभास वो फिर करा गई,
काया बेशक अलग अलग हैं,
बेशक रंग रूप अलग हों,
पर ममता तो सबकी एक ही है,
फिर माँ चाहे इंसान की हो,
या हो फिर किसी बंदर की,,,,,
Comment
माँ शब्द ममता ,सुरक्षा और संरक्षा का पर्याय है ,फिर वो माँ चाहे पशु हो या पक्षी माँ,मातृत्व का महिमामंडन करने में तो स्वयं ईश्वर भी गर्व महसूस करते है ,बहुत अच्छी रचना मन को छु गयी ,अच्छी रचना के लिए साधुवाद .....लोकेश सिंह
सही कहा. हार्दिक बधाई
शीर्षक को सार्थक करती रचना ... बधाई पीयूष जी
आदरणीय पियूष कुमार पन्त जी, बहुत ही सुन्दर शब्द चित्र खीचा है, पूरी रचना एक दृश्य उत्पन्न करती है, माँ शब्द जितना छोटा है उसका अर्थ समंदर से भी विशाल है, बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर |
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