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एक सपना था जो टूट गया फिर,
व्यर्थ का ये प्रलाप है क्यों,
ख़ाबों के टूटने पर भी कभी,
कोई जान देता है भला,


रात तुम सोये,
चंद सपनों ने बहलाया रात भर,
सपने में राजा बने बैठे थे तुम,
दोनों हाथों से धन लुटाते,
अपनी जयघोष सुनकर प्रफुल्लित हुए,

अब नींद पूरी हो गई है,

उठो और मुस्कुराकर,

शुक्रिया कहो उस रात को,
जिसने चंद पलों के लिए ही सही,
कुछ ऐसा दिया,
जो खोजते हो शायद हर रोज कहीं,
सपने में जो देखा वो मिला नहीं,
ये सोचने का आखिर फायदा क्या है,
 
ये जीवन भी एक सपना ही है,
सब खाली हाथ ही आते हैं,
कुछ नाम कुछ सम्मान,
यहाँ पाते हैं कुछ ही देर के लिए,
और इतराते हैं सीने से लगाए उसे,
 
पर जब बारी जाने के आती है,
तब सब छूटता सा लगने लगता है,
जो कुछ लाया ही नहीं,
उसका क्या छूटता है यहाँ, 
 
व्यर्थ के प्रलाप में रखा क्या है,
मौत ही अंतिम सत्य है,
इससे बचना संभव ही कहाँ है,
तो मुस्कुराओ और शुक्रिया कहो,
उस जीवन को जो रंग कई दिखा कर,
अब छूट रहा है धीरे से……..

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Comment by पियूष कुमार पंत on September 27, 2012 at 9:14pm

क्षमा चाहता हूँ पर आपके प्रश्न को समझ नहीं पाया....... 

पर अपनी बात को स्पष्ट करना चाहूँगा......... कि, 

मनुष्य के जीवन के सत्यों में एक सत्य जन्म है, जिसके साथ कई अन्य सत्यों का अनुभव मनुष्य को होता है...... फिर इन्हीं कुछ सत्यों के अनुभव करते हुए मनुष्य मृत्यु तक पहुँच जाता है....... जिसके बाद कोई सत्य मनुष्य के लिए नहीं बचता.... वही एक अंतिम सत्य है जिसे वो अनुभव करता है.... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 27, 2012 at 7:49pm

तो क्या जन्म से पहले और मृत्यु के बाद ......???

Comment by पियूष कुमार पंत on September 27, 2012 at 7:40pm

आपके प्रश्न में ही आपका उत्तर भी छुपा है...... आपने कहा की जीवन और जन्म सत्य नहीं है....... 

जन्म प्रथम सत्य है.... और दूसरा सत्य जीवन ही है....... मौत तो अंतिम सत्य है....... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 27, 2012 at 7:24pm

बहुत सुन्दर सत्य प्रस्तुति.... हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर पियूष जी 

एक बात पूछना चाहती हूँ ...कि मौत को आप अंतिम सत्य क्यों मानते हैं ?.. क्या जीवन और जनम भी उतना ही सच नहीं , जितनी कि मृत्यु है???

कृपया ध्यान दे...

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