For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहानी अपनी अपनी सोच

 
मैं जैसे ही अपने एक पुराने मित्र के घर पहुंचा तो उसकी दयनीय हालत देखकर दंग रह गया.....ऐसा लग रहा था की बरसों का मरीज़ हो  अपने कालेज के समय में हमेशा हीरो जैसे टिप टॉप  रहनें वाला मेरा मित्र आज फटे हाल सी जिंदगी बसर कर रहा था I जगह जगह से कटे,फटे मैले कुचैले कपड़े.....और तो और बनियान में भी इतने छेद थे की गिनना भी  आसान नहीं I
मैं तो यह सोच  रहा था की मेरा मित्र अच्छी नौकरी कर रहा है इसलिए  बेहद शान से जी रहा होगा पूरे ठाठ बाठ से.... लेकिन उससे मिलने के बाद मेरी हर धारणा गलत साबित हो गई I  मैंने हैरानी से उससे पूछा दोस्त यह तुम्हें क्या हो गया तुम्हारी रंगीन ज़िंदगी में यह ग्रहण कैसे लग गया....?  क्या हाल बना रखा है अपना ...? ढंग के कपड़े क्यों नहीं पहनते पहले जैसे ...? किसी अच्छे डाक्टर से अपना इलाज बगैरा क्यों नहीं करवाते...? मेरा मित्र झूठी हँसी हँसते हुए बोला ......सब तकदीर के खेल हैं दोस्त शान से ज़िंदगी जी रहे थे हम.....किस्मत के योग ऐसे पलटे कि अर्श से फर्श पर आ गए I कुछ हादसे ऐसे हो गए कि दाने दाने को मोहताज़ हो गए  तो कहाँ से अच्छे कपड़े पहनते कैसे अपना इलाज करवाते I अब जो थोड़ा बहुत मिलता भी है उससे  बच्चों की लिखाई,पढाई  करवाते उनका पेट पालते ,घर चलाते या अपना इलाज I  किसके सहारे अपने कपड़े अपनी हालत सुधारते I
मैंने पूछा भाभी जी कहाँ है ..? तो उसने  रुआंसे  स्वर में  जवाव दिया यार  अब मैं तो अपनीं मजबूरियों अपनी  हालत के चलते कभी उसके लिए कुछ कर नहीं पाया.... कल उसकी किट्टी निकली थी  पच्चीस हज़ार की.....तो  आज वह उन पैसों से अपने कान के लिए सोने के टॉप्स खरीदने गई है  I मैं हैरानी से कभी उसके फटे कपड़े और कभी उसकी मरियल सी हालत निहार रहा था और मन ही मन यह सोच रहा था की सोना तो आजकल एक तोला तीस हज़ार रुपए से भी ऊपर है अब पच्चीस हज़ार में  कपड़े लत्ते ,इलाज और घर के छोटे छोटे  कई ज़रूरी काम तो कई निकल जाते लेकिन  एक तोले से भी कम सोने के टॉप्स   से होगा क्या और यह दोनों  कानों में दिखेंगे भी क्या ........................? यह तो ऊँट के मुँह में जीरा वाली कहावत चरितार्थ होती दिखती है I      

Views: 557

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on September 4, 2017 at 1:50pm

आप सबका शुक्रिया जी 

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on October 5, 2012 at 9:46am

शुक्रिया प्राची जी,रेखा जी

अफ़सोस केवल यही है की यह सत्य धटना मेरे एक अजीज़ दोस्त की है जो मुझे दिल-ओ जान से प्यारा है लेकिन मैं मूक दर्शक बना देखता,सहता हूँ  
दीपक 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2012 at 8:48pm

तभी तो बड़े लोग कहते थे की जितनी चादर है उतने पैर पसारोगे तो जिन्दगी में मार नहीं खाओगे आपकी इस कहानी को पढ़कर ये कहावत बरबस ही याद आ गई एक सीख देने वाली कहानी बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 4, 2012 at 6:20pm

बहुत सुन्दर यथार्थ चित्रण किया है इस कहानी में...

परिवार की आय का सदुपयोग या दुरूपयोग ही आर्थिक तरक्की का आधार होता है. इंसान पैसा कमाने से धनवान  नहीं, बल्कि उसके सद्संचय से धनवान बनता है.

कई बार स्त्रियों की भी इतनी फरमाइशें होती हैं की बेचारा पुरुष उनको पूरा ना कर पाने की कुंठा में हीनता ग्रस्त हो जाता है. 

दिखावे की जिस अंधी दौड़ में इंसान भाग रहा है, कई बार तो पुरुषों को कमाई के गलत साधनों को अपनाना पढता है, ताकि वो अपनी पत्नियों के कई शौको को पूरा कर सकें... जो बहुत ही गलत है, और जिसके परिणाम कई बार बहुत गलत होते हैं, कई परिवार तो खोखले दिखावों के चलते सड़क पर ही आ जाते है, ऐसे उदाहरण भी समाज में व्याप्त हैं...

इन सब पीडाओं को, लोभ-दिखावे की इस विद्रूपता को दर्शाती सुन्दर कहानी के लिए हार्दिक बधाई आ. दीपक शर्मा जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
13 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service