For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(चार चरण : विषम चरण

१२ मात्रा व सम चरण ७ मात्रा सम चरणों का अंत गुरु लघु से )

 

प्रात जागती नारी, नहिं आराम.

साथ नौकरी करती, है सब काम..

 

प्यार शक्ति दे तभी, उठाती भार.

नारी बिन यह दुनिया, है लाचार..

 

प्रेम स्नेह की करती, जग में वृष्टि.

पूजित नारी जग में, जिससे सृष्टि..

 

त्याग  तपस्या  सेवा, तेरे  नाम.

शक्ति स्वरूपा नारी, तुझे प्रणाम..

 

सत्ता मद में गर्वित, नर है आज.

अखिल विश्व में नारी, का ही राज..

__________________________

--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

Views: 1220

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 11:17pm

मैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ  ....................'सही कहा है आपने नागार्जुन द्वारा रचित यह बरवै आधारित काव्य ही है'' अर्थात बरवै से प्रेरित कविता .....बस इसमें दो पंक्तियों में १२, ७ पर यति का निर्वहन  हुआ है अन्य शेष दो में नहीं हुआ है |

आप द्वारा कहा गया है कि .....

//आंगन से हटकर(,) कुछ(,) थोड़ी दूर   ----१०,९   (या १२-७ भी कहा जा सकता है परन्तु उचित नहीं )//

"आंगन से हटकर कुछ, थोड़ी दूर" ....में १२-७ क्यों उचित नहीं है कृपया स्पष्ट करें .....

मैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि इसे प्रस्तुत करने का उद्देश्य मात्राएँ गिनना नहीं वरन पंक्ति के अंत में आये हुए 'तगण' को  इंगित करना ही है.....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2012 at 11:16pm

जय होऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

आदरणीय भाई श्याम जी का मैं मंच पर स्वागत करता हूँ.

आगे, जो चर्चा चल रही है, उससे मन मुग्ध है. मंच के सदस्यों को आदरणीय अम्बरीषजी तथा श्याम जी की चर्चा से जानने को बहुत कुछ मिल रहा है.

बस एक अनुरोध है. आदरणीय श्यामजी, हम सभी आपस में सीखते-जानते हैं, यह जान कर कि कोई परिपक्व नहीं है. हम परस्पर बातचीत के स्वर को थोड़ा नर्म रखें. बस.

आदरणीय अम्बरीष जी और श्यामजी की बातों से हम सभी संतुष्ट हैं. 

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 5:36pm

सही कहा है आपने नागार्जुन द्वारा रचित यह बरवै आधारित काव्य ही है ....परन्तु इसके प्रस्तुत करने का उद्देश्य १२, ७ पर यति दिखाना नहीं अपितु अंत में तगण को इंगित करना है !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 8:13pm

स्वागत है अशोक जी |

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 8:12pm

धन्यवाद श्याम जी,

मेरे नहीं... श्री जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' जी के कथन को उचित मानिए ...

प्रिंट की गलतियाँ हैं या संपादन की? यह तो निश्चित नहीं पर कुछ और बरवै आधारित काव्य भी देखिये ....जिनमें प्रिंट या  संपादन की गलतियाँ शायद न हों ....

आंगन से हटकर कुछ थोड़ी दूर
एक झोंपड़ी थी उत्तर की ओर

गौतमदार अहिल्या मेरा नाम
यहीं कहीं होंगे मुनि भी हे राम

नागार्जुन

सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 7:45pm

सादर,

         आभार आदरणीय अम्बरीश जी.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 5:29pm

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 5:28pm

भाई अशोक कुमार रक्तले जी व डॉ० श्याम गुप्त जी ! सभी बरवै शुद्ध है ! वस्तुतः बरवै के अंत में जगण की अनिवार्यता नहीं हैं अपितु  बरवै जे अंत में सिर्फ गुरु लघु होना ही काफी है ! जगण से सिर्फ इसकी रोचकता होती है ! इसमें तगण का प्रयोग बहुधा ही देखा गया है .....

छंद प्रभाकर के रचयिता श्री जगन्नाथ प्रसाद भानु जी  के अनुसार बरवै के अंत में जगण होना रोचक होता है परन्तु तगण का प्रयोग भी देखा जाता है ! अर्थात उनके अनुसार अंत जगण होने से रोचकता तो है पर इसकी अनिवार्यता नहीं है !

कृपया निम्नलिखित उदहारण देखें !

का घूँघट मुख मूदहु नवला नारि
चाँद सरग पर सोहत यहि अनुहारि।17।( बरवै रामायण बालकाण्ड/पृष्ठ-4)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 11, 2012 at 2:41am

आपके सभी बरवै शिल्प से अति सुगढ़ हैं, आदरणीय

सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 10, 2012 at 10:42pm

आदरणीय अम्बरीश जी

                 सादर, आपका बहुत बहुत आभार आपने बहुत अच्छे से समझाया है. मै समझ रहा हूँ सम चरणों कि मात्र अंतिम चार मात्राओं पर ध्यान दूँ पांचवी मात्रा ताराज का भ्रम पैदा कर रही है मै उस पर ध्यान नहीं दूंगा.आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service