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कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को
हरेक मोड़ पै कैसे संभालते खुद को

हमारी आँख से दरया कई रवाँ होते
जो आँसुओं की फ़िज़ाओं मैं ढालते खुद को

किसी पै तंज़ की हिम्मत कभी नहीं होती
ज़रा सी देर कभी जो खंगालते खुद को

बड़े ही ज़ोर से आकर ज़मीन पर गिरते
जो आसमान की जानिब उछालते खुद को

बहुत गुरूर है तुमको चिराग होने पर
कभी मचलती हवाओं मैं पालते खुद को

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Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 25, 2010 at 11:49am
कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को
हरेक मोड़ पै कैसे संभालते खुद को

बहुत ही बढ़िया रचना SYED साहब....धन्यबाद है आपको इस बेहतरीन रचना के लिए...ऐसेही लिथ्ते रहे...अगली का इंतज़ार रहेगा..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 22, 2010 at 7:25pm
जनाब SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI
सबसे पहले तो इतनी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद कबूलिये| हर शेर उम्दा है, मेरा सबसे पसंदीदा शेर
किसी पै तंज़ की हिम्मत कभी नहीं होती
ज़रा सी देर कभी जो खंगालते खुद को

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