For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI's Blog (6)

हमारे दिल के ही महमान थे

 हमारे दिल के ही महमान थे   

  कभी तुम भी हमारी जान थे 

 

 बिछड़ते…

Continue

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on April 22, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को
हरेक मोड़ पै कैसे संभालते खुद को

हमारी आँख से दरया कई रवाँ होते
जो आँसुओं की फ़िज़ाओं मैं ढालते खुद को

किसी पै तंज़ की हिम्मत कभी नहीं होती
ज़रा सी देर कभी जो खंगालते खुद को

बड़े ही ज़ोर से आकर ज़मीन पर गिरते
जो आसमान की जानिब उछालते खुद को

बहुत गुरूर है तुमको चिराग होने पर
कभी मचलती हवाओं मैं पालते खुद को

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 20, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है

कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है

तूफान है बज़ीद के डुबोना ज़रूर है


जो मैरे साथ साथ है साए की शक्ल मैं

महसूस हो रहा है वही मुझ से दूर है


मोजों का यह सुकूत न टूटे तो बात हो

दरया मैं डूबने का किसी को शऊर है


देखा है जब से तुमको निगाहों मैं बस गये

हद्दे निगाह सिर्फ़ तुम्हारा ज़हूर है


दामन मैं सिर्फ़ धूप के दरया समाए हैं

सहरा को इस वजूद पे फिर भी गुरूर है

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 17, 2010 at 7:00pm — No Comments

आँखों मैं चले आना सीने मैं उतर जाना

आँखों मैं चले आना सीने मैं उतर जाना
तुम दर्द अगर हो तो फिर मुझ मैं बिखर जाना

रस्ता ना बताए गा मंज़िल के इलाक़े को
तुम खूब समझते हो तुमको है किधर जाना

वो आग उठा लाया सूरज के इलाक़े से
मैने था कभी जिस को साए का शजर जाना

रुकती हैं कहाँ जाकर यह इल्म नहीं कोई
हमने तो हवाओं को मसरूफ़े सफ़र जाना

ए शाम के शहज़ादो क्यूँ जश.न मैं डूबे हो
क्या तुमने अंधेरों को सामने सहर जाना

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 16, 2010 at 10:30pm — 1 Comment

अभी तो शहर मैं हंगामा बहुत है

अभी तो शहर मैं हंगामा बहुत है
फिर इस के बाद इक सन्नाटा बहुत है

हवाओं इक ज़रा झोंका इसे भी
चीरगे राह इतराता बहुत है

भला सूरज से कैसे लड़ सके गा
जो चिंगारी से घबराता बहुत है

हुआ क्या है मेरे चेहरे को आख़िर
उदासी को यह छलकाता बहुत है

मुझे महलों की ज़ीनत मत दिखाओ
मुझे मिट्टी का काशाना बहुत है

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 15, 2010 at 8:30pm — 3 Comments

गजल ... फूल जैसे किसी बच्चे की झलक (वफ़ा नक़वी)

फूल जैसे किसी बच्चे की झलक है मुझ मे,
कितने मासूम ख्यालों की महक है मुझ में !

रोज़ चलता हूँ हजारों किलोमीटर लेकिन,
खत्म होती ही नहीं कैसी सड़क है मुझ में !

मैं उफ़क हूँ मेरा सूरज से है रिश्ता गहरा,
एक दो रंग नही सारी धनक है मुझ में !

वो मुहब्बत वो निगाहें वो छलकते आँसू,
चंद यादों की अभी बाक़ी खनक है मुझ में

चाँद से कह दो हिकारत से ना देखे मुझ को,
माना जुगनू हूँ मगर अपनी चमक है मुझ में !

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on September 30, 2010 at 7:30pm — 5 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service