(बहरे रमल मुसम्मन मख्बून मुसक्कन
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन.
२१२२ ११२२ ११२२ २२)
जब भी हो जाये मुलाक़ात बिफर जाते हैं
हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं
देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं
जो उगाता हूँ उसे रौंद के चर जाते हैं
प्यार है जिनसे मिला उनसे शिकायत ये ही
हुस्नवाले है ये दिल ले के मुकर जाते हैं
माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को
रिश्तेदारों के यहाँ शाम-ओ-सहर जाते हैं
घर बनाने को चले जो भी नदी को पाटें
बाढ़ में बह के वही लोग बिखर जाते हैं
बाढ़ जनता की मुसीबत है अफ़सरों का मज़ा
उनके बिगड़े हुए हालात सुधर जाते है
प्यार से जब भी मिले प्यार जताया 'अम्बर'
क्यों ये कज़रारे नयन अश्क से भर जाते हैं
--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
Comment
आदरणीय अविनाश जी, ग़ज़ल की तारीफ के लिए दिली शुक्रिया क़ुबूल फरमाएं !
बाढ़ का तो वैसे ही बुरा हाल होता है भाईजी ! क्योकि ...
बाढ़ आती है तो हैवान भी डर जाते हैं
खुश्क मौसम हो तो दरिया भी उतर जाते हैं
घर बनाने को चले जो भी नदी को पाटें
बाढ़ में बह के वही लोग बिखर जाते हैं ...शानदार ग़ज़ल का जानदार शेर भाई अम्बरीश जी।।
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