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बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,


बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,
सुना है लोग अब भी बोलते हैं .
बड़े दिल से लगाकर दिल यहाँ पर,
सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं.

कभी अमुआ की अमराई पे कोयल ,
कुहू कुहु के गाती गीत थी पर ,
सुबह की शाख पे बैठी कोयल है ,
नगर में गीत कागा छेडते हैं.

धनक खिलती दिखी थी कल जहां पर ,
आज मरघट सा वो पनघट रुआंसा .
जो बुझाया करे थे प्यास कल तक,
आज वोही क्यों प्यासा छोड़ते हैं

वो सागर रूप के हैं होंगे होंगे ,
कमल तो झील का होता सदा है
हमें अपना बनाने के भरोसे ,
दिला कर खुद भरोसा तोड़ते हैं .

किसी मन्दिर की चौखट पर जलेगा ,
जले गा या किसी मरघट पे फिर भी ,
रहेगा दीप तो हर हाल दीपक ,
जला कर मन-जलाता हैं छोड़ते हैं .

deepzirvi9815524600

Views: 643

Comment

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Comment by आशीष यादव on October 28, 2010 at 1:35pm
sundar rachna hai deep sir.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2010 at 9:08pm
किसी मन्दिर की चौखट पर जलेगा ,
जले गा या किसी मरघट पे फिर भी ,
रहेगा दीप तो हर हाल दीपक ,
जला कर मन-जलाता हैं छोड़ते हैं .

बहुत ही उम्द्दा रचना, बधाई स्वीकार कीजिये दीप साहब |
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 25, 2010 at 11:29am
बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,
सुना है लोग अब भी बोलते हैं .
बड़े दिल से लगाकर दिल यहाँ पर,
सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं.

बहुत ही खुबसूरत रचना दीप साहब...दिल से दिल लगाकर दिल तोड़ने अब आम बात हो गयी है....
शानदार रचना...

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