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कोई सपना सुहाना चाहता हूँ

कोई  सपना  सुहाना  चाहता  हूँ

बच्चों  का  डर  हटाना चाहता हूँ

 

तुमने खामोश आँखों से कहा जो

उन शब्दों को चुराना  चाहता हूँ

 

डर ज़ुल्मों का भला क्यों-कर करें हम

जो सच है वो सुनाना चाहता हूँ

 

जिसने ले ली गरीबों की रोटी भी

फ़ांका उसको कराना  चाहता हूँ

 

उलझे सब नालियों पर और कीचड़

मैं सागर से हटाना चाहता हूँ

 

नहीं “नादिर” शिकायत ज़िंदगी से

जिम्मेदारी निभाना  चाहता  हूँ

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Comment

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Comment by नादिर ख़ान on January 28, 2013 at 10:58am

बहुत शुक्रिया उपासना जी .

Comment by upasna siag on January 24, 2013 at 4:08pm

बहुत बढ़िया जी .........

Comment by नादिर ख़ान on January 23, 2013 at 10:58am

आदरणीय, गणेश जी एवं प्राची जी हौसला अफजाई व टिप्पणी के लिए शुक्रिया.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2013 at 6:27pm

तुमने खामोश आँखों से कहा जो

उन शब्दों को चुराना  चाहता हूँ...........वाह, बहुत खूबसूरत शब्द और ख़याल 

 

जिसने ले ली गरीबों की रोटी भी

फ़ांका उसको कराना  चाहता हूँ.............बहुत खूब सोच 

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई आ. नादिर खान जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 19, 2013 at 3:01pm

//जिसने ले ली गरीबों की रोटी भी
फ़ांका उसको कराना चाहता हूँ//

सुन्दर शेर, बढ़िया ख्याल ।

//उलझे हैं नालियों पर और कीचड़
मैं सागर से हटाना चाहता हूँ//

अदायगी स्पष्ट नहीं है ।

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