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ग़ज़ल - आप खुश हैं कि तिलमिलाए हम

एक और ताज़ा गज़ल आपकी खिदमत में पेश करता हूँ... लुत्फ़ लें ...

आप खुश हैं, कि तिलमिलाए हम |
आपके कुछ तो काम आए हम |

खुद गलत, आपको ही माना सहीह,
जाने क्यों आपको न भाए हम |

आपके फैसले गलत कब थे,
और फिर, सब सगे, पराए हम |

दोस्तों ने भी कुछ कमी न रखी,
और खुद के भी हैं सताए हम |

हम पे इल्ज़ाम था मुहब्बत का,
पर खड़े क्यों थे सर झुकाए हम |

इल्मो-फन का लगा है इक बाज़ार,
लौटते हैं लुटे लुटाए हम |

शामियाने सी फितरतें अपनी,
उम्र भर धूप में नहाए हम |

नाम कम है, जियादा हैं बदनाम,
शाइरी तुझसे बाज़ आए हम |

पसे-आईना कोई है 'वीनस',
जिसको अब तक समझ न पाए हम |

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:21am

@अभिनव जी, आपका हार्दिक आभार

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:21am

@मोहन जी आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:20am

@ विवेक भाई, नाम क्या और बदनाम क्या ... जो हैं आपकी मुहब्बतों से हवाले से हैं ...

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:20am

@सौरभ जी, जैसा है जो भी है बस एकबारगी हो गया और मैंने भी फिर छेड़ छाड़ उचित नहीं समझा ...

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:19am

@ संदीप पटेल भाई आपकी दाद के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, मुहब्बत बनाए रखें ...

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:18am

@रविकर जी आपका ह्रदय तल से आभार

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:18am

@ राजेश जी, आप के द्वारा ऐसी शानदार प्रतिक्रिया मिलना भी एक पुरूस्कार जैसा ही है

हार्दिक आभार

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:17am

शुक्रिया गणेश भाई, आपसे किसी किसी ग़ज़ल पर ही दाद मिल पाती है, इस मामले केन यह ग़ज़ल खुशकिस्मत है और मैं शुक्रगुजार ....

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:16am

@संदीप भाई बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:15am

@ विजय साहिब आपकी मुहब्बतों के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ

कृपया ध्यान दे...

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