ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है
गम के संग आंसू भी देती है
आंसुओं संग दर्द भी देती है
दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती है
तनहाइयों संग फिर रुस्वाइयाँ भी देती है ……
फिर भी हर किसी को जीने की ही चाह होगी
हर पल हर किसी को जीवन की ही प्यास होगी
हसीन सपनो और खवाबो की ही बारात होगी
नित नयी उमंगों और आशाओं की बरसात होगी
लेकिन होगा वही जो ज़िन्दगी की बिसात होगी ……….
फिर मौत आएगी हमें गले लगाएगी
हर दुःख से साथ छुटाएगी
जीवन के बंधनों से मुक्त कराएगी
जीवन का अंतिम सफ़र कराएगी
फिर भी हमारी दुश्मन कहलाएगी ………
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आशा की ओट में नैराश्य का जीवन-दर्शन ?
देह मात्र का जीवन क्या है, क्यों है, उसमें दुःख क्या है, एकाकी सोच क्यों.. ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो समुच्चय में उत्तर चाहते हैं. देह की सीमा पूरे विस्तार को सीमा दे सकती है क्या ? यह प्रश्न निरंतर जीते जाने के साथ जीने के कारण को जानने की चाहना रखते हैं.
आपकी काव्य-यात्रा सतत बनी रहे प्रवीनजी. व्यक्तिगत आह को राह मिले... .
सादर
उलझे से मनोभाव, जिन्दगी पर प्रश्नचिन्ह खड़े करते से, मृत्यु को दुःखों से मुक्ति का ज़रिया समझते से...
इन भावों की और गहराई में जाना होगा...
ताकि उलझा सत्य कुछ तो सुलझे.
१. क्या ज़िंदगी दर्द, गम, आंसूं, तन्हाइयां, रुस्वाइयां देती है.....या इन्हें हम खुद ही अज्ञानतावश ज़िंदगी में पैदा करते हैं.
२. मृत्यु, सिर्फ ज़िंदगी का अंत है..... या दुखों का भी, यह भी गहराई से समझना ज़रूरी है. क्योंकि शरीर का अंत तो दिखता है, पर ज़िंदगी तो निरंतर प्रवाह है...
पर मन में जो कुछ भी हो उसे अभिव्यक्त करना ज़रूरी है, ताकि दुनिया हमें समझ सके, और हम यदि चाहें तो दुनिया से कुछ सीख सकें.
मनोभावों की इस अभिव्यक्ति को आपने रचना में सांझा किया , जिसके लिए आपको बधाई.
सस्नेह
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