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मेरी बातो को जरा समझो ,

मेरी बातो को जरा समझो ,
दर्द भी है यह्सस भी हैं ,
दूर भी हैं ये पास भी हैं ,
मन की ना सुननेवाला ,
मन की ये बिस्वास भी हैं ,
जो मन में आये ओ कह दो ,
मेरी बातो को जरा समझो ,
चाहत इसको कह नहीं सकते ,
फिर भी तुम बिन रह नहीं सकते ,
हस्ती हो तो हसना चाहू ,
रोती हो तो घबराता हु ,
पास मैं चाहू दूर जाती हो ,
मेरी बातो को जरा समझो ,
जाती बाद की बेरी हैं ,
जन चेतना में देरी हैं ,
सोचता हु क्या करू मैं ,
लडू या भाग परु मैं ,
ये भगवान अब रहम करो ,
मेरी बातो को जरा समझो ,

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Comment

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Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 5, 2010 at 9:28pm
bahut acchi rachna hai ye aapki guru jee..........hamesha ki tarah ek aur dhamakedaar rachna..
मेरी बातो को जरा समझो ,
दर्द भी है यह्सस भी हैं ,
दूर भी हैं ये पास भी हैं ,
मन की ना सुननेवाला ,
मन की ये बिस्वास भी हैं ,
Comment by Kanchan Pandey on May 5, 2010 at 9:05pm
चाहत इसको कह नहीं सकते ,
फिर भी तुम बिन रह नहीं सकते ,
हस्ती हो तो हसना चाहू ,
रोती हो तो घबराता हु ,
पास मैं चाहू दूर जाती हो ,
मेरी बातो को जरा समझो ,

achhi kavita hai, So nice, thanks once again,
Comment by Admin on May 5, 2010 at 9:03pm
गुरु जी आप की ये भी कविता पिछली कविता की तरह बहुत ही अच्छी है,

जातिवाद की बेरी हैं ,
जन चेतना में देरी हैं ,
सोचता हु क्या करू मैं ,
लडू या भाग पडू मैं ,
हे भगवान अब रहम करो ,
मेरी बातो को जरा समझो ,


आप जो इतनी सरल भाषा मे अपनी कविता मे बहुत बड़ी-बड़ी बात कह जाते है, वही आपको और आपकी कविता को खाश बनाता है, एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद है आपको,

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