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पथ के कांटे

तेरी एक छुअन

नया साहस।

   -----

 

ओस की बूंदें

हवा की शीतलता

तेरी छुअन।

   -----

 

तुम्हारा आना

बेचैन करता है

तुम्हारा जाना।

    -----

ढलती शाम

पंछी का कलरव

मेरी तन्हाई।

     -----

 

गांधी की देन

दो तारीख की छुट्टी

मौज ही मौज।

      -----

 

कल टंगे थे

आज खाली है फ्रेम

कहां हो गांधी।

       -----

            - बृजेश नीरज

 

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Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 9:42pm

आपका आभार वंदना जी!
आपने आजकल रचनाकर्म क्यों बंद कर रखा है?

Comment by Vindu Babu on March 13, 2013 at 9:39pm
क्षमा चाहती हूं श्रीमान आपकी ये अप्रतिम रचना(हाइकू) इतने विलम्ब से देख पा रही हूं।
बहुत सुन्दर मनमोहक कृति है।
सादर बधाई।
Comment by बृजेश नीरज on March 5, 2013 at 7:16pm

आपका आभार आदरणीया आशा जी!

Comment by asha pandey ojha on March 5, 2013 at 7:11pm

bahut umda ban padee hai yah haiku kavita 

Comment by बृजेश नीरज on March 5, 2013 at 6:44pm

आदरणीया वेदिका जी सादर आभार!

Comment by वेदिका on March 5, 2013 at 9:53am

तुम्हारा आना
बेचैन करता है
तुम्हारा जाना।...

बहुत सुंदर रचे है हाइकू!

शुभकामनायें 

सादर वेदिका 

Comment by बृजेश नीरज on March 4, 2013 at 5:58pm

आदरणीय लक्ष्मण जी को बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by बृजेश नीरज on March 4, 2013 at 5:57pm

आदरणीय प्राची जी आपका आभार! आपका सुझाव वास्तव में रूचिकर है। भविष्य में इसे नियम की तरह प्रयोग करने का प्रयास करूंगा। निश्चित रूप से सुन्दरता में वृद्धि होगी!
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on March 4, 2013 at 5:54pm

आदरणीय पवन जी व राज जी आप दोनों का बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 4, 2013 at 5:53pm

आदरणीय रविकर जी सादर आभार! इसलिए भी कि आपने प्रशंसा में एक हाइकू रच दी।

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