पथ के कांटे
तेरी एक छुअन
नया साहस।
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ओस की बूंदें
हवा की शीतलता
तेरी छुअन।
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तुम्हारा आना
बेचैन करता है
तुम्हारा जाना।
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ढलती शाम
पंछी का कलरव
मेरी तन्हाई।
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गांधी की देन
दो तारीख की छुट्टी
मौज ही मौज।
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कल टंगे थे
आज खाली है फ्रेम
कहां हो गांधी।
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- बृजेश नीरज
Comment
आपका आभार वंदना जी!
आपने आजकल रचनाकर्म क्यों बंद कर रखा है?
आपका आभार आदरणीया आशा जी!
bahut umda ban padee hai yah haiku kavita
आदरणीया वेदिका जी सादर आभार!
तुम्हारा आना
बेचैन करता है
तुम्हारा जाना।...
बहुत सुंदर रचे है हाइकू!
शुभकामनायें
सादर वेदिका
आदरणीय लक्ष्मण जी को बहुत बहुत धन्यवाद!
आदरणीय प्राची जी आपका आभार! आपका सुझाव वास्तव में रूचिकर है। भविष्य में इसे नियम की तरह प्रयोग करने का प्रयास करूंगा। निश्चित रूप से सुन्दरता में वृद्धि होगी!
सादर!
आदरणीय पवन जी व राज जी आप दोनों का बहुत आभार!
आदरणीय रविकर जी सादर आभार! इसलिए भी कि आपने प्रशंसा में एक हाइकू रच दी।
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