जय अम्बे जय मातु भवानी
जय जननी जय जगकल्यानी
जय बगुला जय विन्ध्यवासिनी
जय वैष्णव जय सिंहवाहिनी
कण कण में है वास तिहारा
तुम जग की हो पालनहारा
करूणा की हो सागर माता
तू सबकी है भाग्य विधाता
दूजा को है तुम सम ज्ञानी
मैया तू जग की महरानी
हम सब माता बालक तेरे
हित अनहित सब है वश तेरे
शरण पड़े माता हम तोरे
विनती करूं मात कर जोरे
इन चरणों में शीश नवावें
तेरी महिमा नित प्रति गावें
- बृजेश नीरज
Comment
संदीप जी आपका आभार!
आदरणीय सौरभ जी,
आपका बहुत आभार! आपकी इस टिप्पणी से लगता है कि मेरा पहला प्रयास कुछ हद तक सफल रहा। आपने जो निर्देश दिए हैं उनका भविष्य में पालन करने का प्रयास करूंगा। मुझे भी लगता है कि रचना को कई बार पढ़ने के बावजूद अति उत्साह में इस पंक्ति की गेयता पर मैंने ध्यान नहीं दिया। आभार!
सादर!
इन भक्ति बहाव से भारी चौपाइयो के लिए बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय
विनती करूं मात कर जोरे
इस पंक्ति को छोड़ कर मात्रा और गेयता का सुन्दर निर्वहन हुआ है.
काव्य रचना के आधारभूत नियमों के अनुसार एक बात ध्यातव्य है, कि हम पंक्तियों का शब्द-संयोजन सम और विषम के बाद विषम शब्द रखने का अभ्यास करें.
उपरोक्त पंक्ति में --
विनती (सम) करूं (विषम) आया है और पुनः मात (विषम) के बाद कर (सम) शब्द आया है. यानि उपरोक्त आधारभूत नियम का उल्लंघन. बस यही गेयता के टूटने का सबसे बड़ा कारण.
इस पंक्ति को यों लिखा जाय - मात करूँ विनती कर जोरे तो समस्या का समाधान होता दीखता है.
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका आभार!
सुंदर माँ स्तुति चौपाइयाँ हेतु बधाई आपको|
जय आंबे जय मातु भवानी,
शीश नवा करे विनती, जय कल्याणी
आदरणीय रविकर जी,
आपको सादर प्रणाम!
आदरणीय पवन जी
आपका आभार! जय अम्बे!
आदरणीय राम शिरोमणि जी आपका आभार!
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