अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा में थक गए नैन,
अधरों से मेरे फूटते नहीं है बैन।
कटती नहीं मुझसे विरह की रैन,
आता नहीं मेरे मन को कहीं चैन।
उनके बिना होता नहीं कोई काम -काज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
बिना उनके फीका सौन्दर्य तुम्हारा,
कोयल के गीतों ने भी उन्हें पुकारा।
बिना प्रिय के अधूरा श्रृंगार हमारा,
काम -बाणों ने बेध दिया तन-मन सारा।
तुमसे ये सब कहते हुए मुझे आती नहीं लाज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा करते कितने युग बीते,
फिर भी हाथ हैं मेरे अब तक रीते।
कब तक हम रहे ऐसे अश्रु -जल पीते,
उन्हें बता दो,उनके बिना कैसे हैं जीते?
आज नहीं भय कि क्या कहेगा समाज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
हे वसंत,तुम मेरे दूत बन जाओ,
मेरी ये व्यथा उन्हें जाकर सुनाओ।
हे मधुमास,उन्हें मेरे समीप ले आओ,
अन्यथा तुम मेरे प्राण हर ले जाओ।
कह दो उनसे,तोड़ दो सारे बंधन आज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]
Comment
आदरणीय योगी जी, सौरभ जी,विजय जी और राम शिरोमणि जी,
सादर नमस्कार !
आप सभी के बधाई संदेशों एवं शुभकामनायों के लिए मैं आभारी हूँ। यदि मेरी काव्य -रचना आप सभी को पसंद आ रही हैं तो ये मेरे लिए बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि मेरे रचना कर्म को सार्थकता मिल रही है। पुनः आभार !
आदरणीया सावित्री जी,
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा करते कितने युग बीते,
फिर भी हाथ हैं मेरे अब तक रीते।
कब तक हम रहे ऐसे अश्रु -जल पीते,
उन्हें बता दो,उनके बिना कैसे हैं जीते?
आज नहीं भय कि क्या कहेगा समाज।
बहुत सुन्दर.............बधाई।
आदरणीया सावित्री जी:
बहुत ही उत्कृष्ट कविता लिखी है आपने।
बधाई।
सादर,
विजय
मेघदूत से प्रेरित प्रस्तुत रचना के बाद यह मंच कवयित्री से और उम्मीद लगाये बैठा है.
हार्दिक शुभकामनाएँ. .
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा करते कितने युग बीते,
फिर भी हाथ हैं मेरे अब तक रीते।
कब तक हम रहे ऐसे अश्रु -जल पीते,
उन्हें बता दो,उनके बिना कैसे हैं जीते?
आज नहीं भय कि क्या कहेगा समाज।
बहुत सुन्दर
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